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चोधू अंग
आधार होवाथी प्रथम पूर्वगत सूत्रनो अर्थ कहे छे तेथी करीने ते पूर्व एवा नामे कहेला छे. वळी गणधरो सूत्रनी रचना दृष्टिवाद समवायाङ्ग
करता सता आचारांगादिक सूत्र अनुक्रमे रचे छे अने स्थापन करे छे. अन्यनो मत एवो छ के-पूर्वगत सूत्रनो अर्थ परिचय । प्रथम अरिहंते कयो अने गणधरोए पण पूर्वगत श्रुतने ज प्रथम रच्यु छ अने पछी आचारांगादिक रच्यां छे. अहीं कोई शंका करे के-जो एम होय तो आचारांगनी नियुक्तिमा कयुं छे के 'सव्वेसिं आयारो पढमो' (सर्वने मध्ये आचारांग
प्रथम छे ) इत्यादि शी रीते घटी शके ? उत्तर-ते नियुक्तिमां तो स्थापनने आश्रीने ते प्रमाणे कयुं छे अने अहीं तो अक्ष॥२५३||
रनी ( सूत्रनी ) रचनाने आश्रीने कयुं छे के प्रथम पूर्वो रच्यां छे इति । हवे ते पूर्वगत चौद प्रकारे कयु छे. ते आ प्रमाणे'उप्पायेत्यादि'-तेमां पहेलु उत्पाद पूर्व छ, अने ते पूर्वमा सर्व द्रव्य अने पर्यायोना उत्पाद( उत्पत्ति )पणाने अंगीकार करीने प्रज्ञापना( व्याख्या ) करी छे. तेना पदोनुं परिमाण (पदोनी संख्या ) एक करोड छे १, बीजुं पूर्व अग्रेणीय छे. तेमां पण सर्व द्रव्यो अने पर्यायो तथा जीवविशेषो( विशेष प्रकारना जीवो )नु अग्र एटले परिमाण वर्णन कराय छ तेथी ते अग्रणीय कहेवाय छे, तेनुं पदपरिमाण छन्नु लाख पदनुं छे २, त्रीजु पूर्व वीर्यप्रवाद छे. तेमां पण कर्म सहित अनेक कर्म रहित एवा जीव अने अजीवनुं वीर्य कहेलुं छे, तेथी ते वीर्यप्रवाद कहेवाय छे. तेनुं सीतेर लाख पदनुं प्रमाण छे
३, चोथु पूर्व अस्तिनास्तिप्रवाद नामर्नु छे. लोकमां जे जे पदार्थ जे प्रकारे छ अथवा जे प्रकारे नथी, अथवा तो स्याद्वाHदना अभिप्रायथी ते ज वस्तु छे अने ते ज वस्तु नथी ए प्रमाणे जे कहे ते अस्तिनास्तिप्रवाद कहेवाय छे. ते पण पदना परिमाणथी साठ लाख पदनुं छे ४, पांचमुं पूर्व ज्ञानप्रवाद नामनुं छे. तेने विपे मतिज्ञानादिक पांच ज्ञानना मेदनी प्ररू
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