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समवाया -पत्र ॥
- ॥२५२॥
चिंता (विचार) करे छे तेमा नैगम नय बे प्रकारनो छे-सांग्राहिक अने असांनाहिक. तेमां संग्रहमा जे प्रवेश करेलो होय ते सांगा- दृष्टिवाद हिक अने व्यवहारमा जे प्रवेश करेलो होय ते असांग्राहिक कहेवाय छे. तेथी करीने संग्रह १, व्यवहार २, ऋजुसूत्र ३ अने शब्दा- परिचय॥ दिक मळीने एक ज ४, एम चार नय मानेला छे. आ चारे नयवडे करीने स्वसमय संबंधी छ परिकर्म चिंतवाय छे. तेथी
करीने मूळ सूत्रमा कमु छ के–'छ चउकनयाई ति(छ परिकर्म चार नयवाळा ) होय छे. इति । चळी तेओ ज ॐ आजीविक एटले त्रिराशिवाळा कहेला छे. शाथी? ते कहे छे-कारण के तेओ सर्व वस्तु ऋण स्वरूपवाळी इच्छे छे. जेमके
जीव, अजीव अने जीवाजीव; लोक, अलोक अने लोकालोकसत् , असत् अने सदसत् विगेरे. नयनी चिंतामां पण तेओ त्रण नयने इच्छे छे. ते आ प्रमाणे-द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक अने उभयार्थिक. तेथी करीने मूळ सूत्रमा कह्यु के-'सत्त तेरासिय त्ति'-सात परिकर्मने त्रैराशिक पाखंडीओ त्रण प्रकारनी नयचिंतावडे चिंतवे छे, ए एनो अर्थ छे. 'सेत्तं परिकम्मे त्ति' (ते आ परिकम कर्दा)-ए निगमन कहुं ॥ १॥
से किं तं सुत्ताई' इत्यादि. तेमां सर्व द्रव्य, पर्याय अने नय विगेरे अर्थने सूचवनार होवाथी सूत्र कहेवाय छे. ते सूत्रो अठाशी छे. ते सर्वे सूत्रथी अने अर्थथी विच्छेद पाम्या छे, तो पण जोयाने (जाण्याने) अनुसारे काइक लखाय । छे-आ ऋजुक विगेरे चावीश सूत्रो छे, ते ज विभागथी अट्ठाशी थाय छ, केवी रीते ? ते कहे छ-आ बावीश सूत्रो छिन्नच्छेद नयने आश्रीने स्वसमयना सूत्रनी परिपाटीए कह्या छे. अहीं जे नय छिन्न एवा सूत्रने छेदवडे इच्छे छे, ते छिन्नच्छेद नय कहेवाय छे. जेमके-धम्मो मंगलमुकिलु' इत्यादि श्लोक सूत्रथी अने अर्थथी प्रत्येक छेदे करीने ५ ॥२५२॥..