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दृष्टिवाद परिचय॥
समवायाङ्ग
चोधु अंग ॥२५॥
जेटला सिद्ध थया ते, पादोपगमने पामेला जेओ जे ठेकाणे जेटला भातपाणीने छेदीने ( अनशन करीने) अंतकृत थइने मुनिवरोमां उत्तम एवा तेओ अज्ञानरज(कर्मरज)ना समूहथी मुक्त थइ अनुत्तर सिद्धिमार्गने पाम्या, आ अने एनी जेवा वीजा पण भावो मूळ प्रथमानुयोगने विपे जे कहेला छे ते अहीं कहेवाय छे, प्रज्ञापना कराय छ, प्ररूपणा कराय छे. ते आ मूळ प्रथमानुयोग कह्यो. हवे कयो ते गंडिकानुयोग छ ? गंडिकानुयोग अनेक प्रकारे करो छे. ते आ प्रमाणे-कुलकरगंडिका, तीर्थकरगडिका, गणधरगंडिका, चक्रवर्तीगंडिका, दशारगंडिका, बळदेवगंडिका, वासुदेवगंडिका, हरिवंशगंडिका, भद्गबाहुगंडिका, तपकर्मगंडिका, चित्रांतरगंडिका, उत्सर्पिणीगंडिका, अवसर्पिणीगंडिका, तथा अमर, नर, तिर्यच अने नरकगतिमा गमन करवू, विविध प्रकारे पर्यटन करवू तेनो अनुयोग ( व्याख्यान) करवो, ए विगेरे गंडिकाओ आमां कहेवाय छ, प्रज्ञापना कराय छे, प्ररूपणा कराय छे, ते आ गंडिकानुयोग कहो. (ते आ अनुयोग कहो.) ॥४॥ - हवे कइ ते चूलिका छ ? पहेला चार पूर्वमा चूलिकाओ छे अने वाकीना पूर्वमां चूलिकाओ नथी. ते आ चूलिका कही ॥५॥
आ दृष्टिचादने विष परित्त (संख्याती) वाचना छ, संख्याता अनुयोगद्वार छ, संख्याती प्रतिपत्ति छ, संख्याती नियुक्ति छे, संख्याता श्लोक छे, संख्याती संग्रहणी छे, ते आ अंगार्थकनी अपेक्षाए चार अंग छे, तेमां एक श्रुतस्कंध छ, चौद । | पूर्व छ, संख्याती वस्तु छ, संख्याती चूल(लघु)वस्तु छे, संख्याता पाहुडा (प्राभृतक) छे, संख्याता प्राभूतप्राभूत छ, संख्याती
१. तीर्थकरादिकनी पछी तेमनी पाटपरंपराए जे थया होय ते अने बीजा उत्तम पुरुपो.
॥२५॥