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चूलिका वस्तु कही छे १, अग्रणीय पूर्वमा चौद वस्तु कही छे अने बार चूलिका वस्तु कही छे २, वीर्यप्रवाद पूर्वमा आठ वस्तु | कही छे अने आठ चूलिका वस्तु कही छे ३, अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्वमा अढार वस्तु कही छे अने दश चूलिका वस्तु कही कछे ४, ज्ञानप्रवाद पूर्वमां बार वस्तु कही छे ५, सत्यप्रवाद पूर्वमां वे वस्तु कही छे ६, आत्मप्रवाद पूर्वमां सोळ वस्तु कही
छ ७, कर्मप्रवाद पूर्वमा त्रीश वस्तु कही छे ८, प्रत्याख्यान पूर्वमां वीश वस्तु कही छे ९, विद्यानुप्रवाद पूर्वमां पंदर वस्तु कही छे १०, अवंध्य पूर्वमां बार वस्तु कही छे ११, प्राणायुपूर्वमां तेर वस्तु कही छे १२, क्रियाविशाल पूर्वमां त्रीश | वस्तु कही छे १३, तथा लोकबिंदुसार पूर्वमां पचीश वस्तु कही छ १४. (गाथानो अर्थ)-"दश १, चौद २, आठ ३,
अढार, ४ बार ५, वे ६, सोळ ७, त्रीश ८, वीश ९, विद्यानुप्रवादमा पंदर १० [१] अग्यारमा पूर्वमा वार ११, वारमा | | पूर्वमा तेर १२, तेरमा पूर्वमां त्रीश १३ अने चौदमा पूर्वमां पचीश १४, वस्तु कही छे [२] पहेला चार पूर्वमा अनुक्रमे | चार १, बार २, आठ ३ अने दश ४, चूलिका वस्तु कही छे. बाकीना पूर्वमांचूलिका नथी (३)॥" ते आ पूर्वगत कयुं ॥३॥
. हवे ते अनुयोग शुं छे ? अनुयोग वे प्रकारे कह्यो छे. ते आ प्रमाणे-मूळ प्रथमानुयोग अने गंडिकानुयोग. हवे ते मूळ प्रथमानुयोग शुं छे ? आ मूळ प्रथमानुयोगमा भगवान अरिहंतोना पूर्वभव, देवलोकमां गमन, आयुष्य, च्यवन, जन्म, अभिषेक, राज्यनी श्रेष्ठलक्ष्मी, शिविका, प्रव्रज्या, तप, भक्त, केवलज्ञाननी उत्पत्ति, तीर्थनुं प्रवर्तन, संघयण, संस्थान, ऊंचाइ, आयुष्य, वर्णविभाग, शिष्य, गण, गणधर, साध्वी, प्रवर्तिनी, चतुर्विध संघर्नु जे प्रमाण, तथा जिन (केवळी), मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, सम्यगज्ञानी (मतिज्ञानी) श्रुतज्ञानीनुं जे प्रमाण, तथा वादी, अनुत्तर विमानमां गयेला,