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________________ श्री समवायाङ्ग सूत्र ॥ लोधुं अंग ॥२४७॥ परिकम् ? परिकम्मे सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा- सिद्धसेणियापरिकम्मे १, मणुस्स सेणियापरिकम्मे २, पुसेणियापरिकम्मे ३, ओगाहणसेणियापरिकम्मे ४, उवसंपज्ज सेणियापरिकम्मे ५, विप्पजहसेणियापरिकम्मे ६, चुआचुअसेणियापरिकम्मे ७ । से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे ? सिद्धसेणियापरिकम्मे चोद्दसविहे पन्नत्ते, तं जहा - माउयापयाणि १, एगट्टियपयाणि २, पादोद्वपयाणि ३, आगासपयाणि ४, केउभू (व्व ) यं ५, रासिबद्धं ६, एगगुणं ७, दुगुणं ८, तिगुणं ९, केउ भूयं १०, डिगो ११, संसार डिग्गहो १२, नंदावत्तं १३, सिद्धबद्ध १४, से तं सिद्धसेणियापरिकम्से १ । से किं तं मणुस्स सेणियापरिकम्मे ? मणुस्ससेणियापरिकम्मे चोदसविहे पन्नत्ते, तं जहा-ताई चैव माउआपयाणि जाव नंदावत्तं मणुस्सबद्धं, से तं मणुस्स सेणियापरिकम्मे २ । अवसेसा परिकम्माई पुट्ठाइयाई एकारसविहाई पन्नत्ताई ७ । इच्चेयाइं सत्त परिकम्माई, छ ससमइयाई सत्त आजीवियाई, छ चउक्कणइयाई सत्त तेरासियाई, एवामेव सपुवावरेणं सत्त परिकम्माई तेसीति भवतीति मक्खायाई, से त्तं परिकम्माई ॥ १ ॥ दृष्टिवाद परिचय | -॥२४७॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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