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समास करवो, त्यारपछी आ सर्वना जे विशेष एटले उत्कर्ष ते (कहेवाय छे). तथा घणा प्रकारना कामभोगथी उत्पन्न थयेला सुखना विशेषो, अहीं पण विशेष शब्दनो संबंध करवो. उत्तम छे शुभविपाक जेओनो ते शुभविपाकोत्तम एवा जीवोने विषे, अहीं पष्ठीना अर्थमां सप्तमी विभक्ति करी छे. आ रीते शुभविपाक अध्ययनमां कहेवा लायक साधुओना आयुष्य विगेरेना विशेपो शुभविपाक अध्ययनमां कहेवाय छे एम संबंध करवो. । हवे दरेक (बन्ने) श्रुतस्कंधमां कहेवा लायक पुण्यविपाक अने पापविपाक जुदा जुदा कहीने ते बन्नेने एक साथे कहे छे-'अणुवरयेत्यादि'-अनुपरत एटले अविच्छिन्न (निरंतर) एवा जे परंपराए करीने संबंधवाळा छे, कोण ? ते कहे छे-विपाक, एवो अहीं संबंध करवो, विपाक | कोनो ? ते कहे छे-अशुभ अने शुभ कर्मना (विपाक) पहेला अने वीजा श्रुतस्कंधमां अनुक्रमे कहेला घणा प्रकारना जे विपाक ते विपाकश्रुतने विषे एटले अग्यारमा अंगने विपे भगवान जिनेश्वरे संवेगना कारणवाळा पदार्थों तथा बीजा पण ए विगेरे पदार्थों कहेवाय छे एम पूर्वना क्रियापद साथे संबंध करवो अथवा वचननो फारफेर करीने उत्तरक्रियानी साथे संबंध करवो. । आ प्रमाणे घणा प्रकारनी अर्थनी प्ररूपणा विस्तारथी कहेवाय छे। बाकीचें सूत्र सुगम छे. विशेष ए के
संख्याता लाख पदो कुल मळीने छे. तेमां एक करोड, चोराशी लाख अने वत्रीश हजार कुल पद छे ॥११॥ सूत्र-१४६॥ का हवे बारमुं अंग कहे छेIN मू०-से किं तं दिविवाए ? दिट्ठिवाए णं सव्वभावपरूवणया आघविनंति । से समासओ Kा पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा-परिकम्मं १, सुत्ताइं २, पुव्वगयं ३, अणुओगो ४, चूलिया ५।से किं तं