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की समवायाङ्ग
सत्र। चोयं अंग
प्रश्नव्याकरणांग परिचय
॥२४॥
विस्तारथी एटले वचनना मोटा आडंबरथी कहेली, तथा स्थिर एवा महर्षिओए अथवा पाठांतरे वीर एवा महर्षिओए
विविहवित्थरभासियाणं च त्ति'--विविध विस्तारवडे कहेली, अहीं'च' शब्द कह्यो छे ते त्रीजा रचनार ( कहेनार-महर्षि )ना भेदनो समुच्चय करवा माटे कह्यो छे. वळी केवा प्रकारनी प्रश्नविद्या? ते कहे छे-'जगहियाणं ति'-- पुरुषार्थमां उपयोगीपणुं होवाथी जगतने हितकारक एवी, कोना संबंधी ? ते कहे छे-'अदाग त्ति'--आदर्श, अंगुष्ठ, बे हाथ, खड्ग, मणि, क्षौम-वस्त्र अने सूर्य, आटला शब्दनो द्वंद्व समास करचो. पछी आ सर्व छे आदि जेने एटले जे भीत, शंख, घंटादिकने ते आदर्शादिक संबंधी. केम के प्रश्नविद्यावडे आदर्शादिकनुं स्थापन थाय छे तेथी (आदर्शादिक संबंधी आ प्रश्नविद्या जगतने हितकारक छे), वळी ते प्रश्नविद्या केवा प्रकारनी छ ? ते कहे छे-विविध प्रकारनी महाप्रश्नविद्या एटले के जे वाणीवडे ज (बोलीने) प्रश्न करे सते उत्तरने आपनारी होय ते, अने मनःप्रश्नविद्या एटले मनथी ज पूछेला अर्थने जे उत्तर आपनारी होय ते, आ बन्नेना अधिष्ठायक देवताना प्रयोगनी-व्यापारनी प्रधानताए करीने विविध प्रकारना अर्थनो संवाद करनारा गुणने लोकमां प्रकाश करनारी, वळी ते प्रश्नविद्या केवी ? ते कहे छे-सद्भुत एटले तात्विक (साचा) अने द्विगुण एटले बमणा तथा उपलक्षणथी लौकिक प्रश्नविद्याना प्रभावनी अपेक्षाए बहुगुणवाळा अथवा पाठां. तरे विविध गुणवाळा एवा प्रभाववडे-माहात्म्यवडे मनुष्योना समूहनी बुद्धिने विस्मय करनारी एटले चमत्कार करनारी, वळी ते प्रश्नविद्या केवी? ते कहे छे--' अतिसयमतीतकालसमयेति --अत्यंत अतीत थयेला (वीती गयेला) काळसमयने विपे अर्थात् अत्यंत व्यवधानवाळा काळने विषे दम अने शमवडे प्रधान-मुख्य एवा अने अन्य दर्शनोने शासन
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