________________
संख्याता अक्षरो, अनंता गमा, यावत् चरणकरणनी प्ररूपणा कहेवाय छे । ते आ प्रश्नव्याकरण में कह्यु ॥ १०॥ सूत्र-१४५॥
टीकार्थ:--'से किं तमित्यादि'-प्रश्ननो अर्थ प्रसिद्ध छे, अने तेनुं (प्रश्नमुं) निर्वचन एटले व्याकरण (उत्तर) ए रीते प्रश्नोना अने तेनां व्याकरणो( उत्तरो)ना योगथी प्रश्नव्याकरण कहेवाय छे, तेने विपे' अहत्तरं पसिणसयं-- एक सो ने आठ प्रश्न छे. तेमां अंगूठो, हाथ अने प्रश्न विगेरे जे मंत्रविद्याओ ते प्रश्न कहेवाय छे, बळी जे विद्या मंत्रना। विधिवडे जाप करवाथी पूछथा विना ज शुभाशुभ फळने कहे ते अप्रश्न कहेवाय छे, तथा अंगूठो विगेरे प्रश्नना होवापणाने अथवा न होवापणाने आश्रीने (प्रश्न पूछे के न पूछे तो पण ) जे विद्या शुभाशुभ फळने कही आपे ते प्रश्नाप्रश्न कहेवाय छ। 'विजाइसय त्ति'--तथा बीजा पण विद्याना अतिशयो जेवा के स्तंभ, स्तोभ, वशीकरण, द्वेषकरण, उच्चाटन विगेरे विद्याओ, तथा भवनपतिना नाग सुपर्ण देवोनी साथे अने उपलक्षणथी यक्षादिक देवोनी साथे साधक पुरुषने दिव्य अने ताचिक (साचा) शुभाशुभ विषयवाळा संवाद-संलाप थाय ते सर्व आ अंगमां कहेवाय छे . आ ज विषयने प्राये विस्तारता सता कहे छे--पण्हावागरणदसेत्यादि'--तथा प्रश्नव्याकरणदशाने विषे स्वसमय अने परसमयने कहेनारा करकंवादिक जेवा प्रत्येकवुद्धोए विविध अर्थवाळी गंभीर भाषावडे कहेली (प्रश्नविद्या), तेओनी, शुं ? ते कहे छे-| आदर्श, अंगुष्ठ विगेरे संबंधी प्रश्नोना विविध गुणरूपी महाअर्थो आ प्रश्नव्याकरणदशाने विषे कहेवाय छे एम संबंध करवो. वळी ते प्रश्न विद्या केवी ? ते कहे छे--' अइसयगुण.'-आमपौषधि विगेरे अतिशयो, ज्ञानादिक गुणो अने स्वपरना भेदवाळो उपशम, आ विविध प्रकारना जेने छे एवा आचार्योए कहेली, केवी रीते कहेली? ते कहे छ-'वित्थं