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________________ समवायाङ्ग पोएं अंग ॥२३९॥ चरणकरणपरूवणया आघविज्जति । से तं पण्हावागरणाई ॥१०॥ सूत्रम्-१४५॥ प्रश्नव्याक रणांग मूलार्थ:-कडे ते प्रश्नव्याकरण छे ? प्रश्नव्याकरणने विपे एक सो ने आठ प्रश्न, एक सो ने आठ अप्रश्न, एक सोने परिचय।। 9. आठ प्रश्नाप्रश्न, विद्याना अतिशयो तथा नाग सुपर्ण नामना भवनपति विगेरेनी साथे दिव्य संवादो कहेवाय छे । तथा प्रश्नव्याकरणदशाने विपे स्वसमय अने परसमयने कहेनारा प्रत्येकवुद्धोए विविध अर्थवाळी भापावडे कहेली (प्रश्नविद्या), तथा विविध प्रकारना अतिशय, गुण अने उपशमवाळा आचार्योए विस्तारथी कहेली, तथा वीरमहर्पिओए विविध विस्तारवडे कहेली, तथा जगतने हितकारक, तथा आदर्श, अंगुष्ठ, बाहु, खड्ग, मणि, वस्त्र अने सूर्यादिकना संबंधवाळी, तथा विविध प्रकारनी महाप्रश्नविद्यानी अने मनप्रश्नविद्यानी अधिष्ठायिका देवताओना प्रयोगना मुख्यपणाए करीने गुणोने प्रकाश करनारी, तथा साचा अने बमणा प्रभावबडे मनुष्यना समूहनी बुद्धिने विस्मय करनारी, तथा अत्यंत बीती गयेला काळसमयने विषे थइ गयेला दम अने शमवाळा उत्तम तीर्थकरनी स्थितिनुं स्थापन करवाना कारणभूत एवो, तथा दुःखे करीने जाणी शकाय, दुःखे अवगाही शकाय तथा अवुधजनने विवोध करनार एवा सर्व सर्वज्ञोने संमत तत्वनी प्रत्यक्ष प्रतीति करावनारी एवी प्रश्नविद्याना जिनेश्वरे कहेला विविधगुणवाळा महापदार्थों आ अंगमां कहेवाय छ । प्रश्नव्याकरणने विपे संख्याती वाचना, संख्याता अनुयोगद्वार, यावत् संख्याती संग्रहणी छे । ते आ अंगार्थकपणाए करीने दशर्मु अंग छे, तेमां एक श्रुतस्कंध, पीस्ताळीश उद्देशनकाळ, पीस्ताळीश समुद्देशनकाळ तथा कुल संख्याता लाख पदो कहेला छे. तेमाल ॥२३९॥ . .
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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