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प्रकारना ऋद्धिविशेषो छे, जिनेश्वरनी समीपे जेवी रीते पर्षदातुं प्रगट थर्बु छे, तेओ जेवी रीते जिनेश्वरनी उपासना करे | छे, जेवी रीते जगद्गुरु अमर, नर अने असुरना समूहनी पासे धर्मने कहे छे, ते भगवाननुं भाषित सांभळीने अवशिष्ट कर्मवाळा अने विषयथी विरक्त थयेला मनुष्यो घणा प्रकारना संयम अने तपरूपी उदार धर्मने जे रीते पामे छे, तथा जे रीते घणा वर्ष सुधी तप संयमर्नु सेवन करीने ज्ञान, दर्शन अने चारित्रना योगने आराधन करनारा, संबंधवाळा अने पूजित एवा जिनवचनने कहेनारा, जिनेश्वरोने हृदयवडे ध्यान करीने जेओ जे ठेकाणे जेटला भक्तपानने छेदीने अने उत्तम समाधिने पामीने उत्तम ध्यानयोगवडे युक्त थयेला एवा उत्तम मुनिवरो जे प्रकारे अनुत्तर देवलोकने विषे उत्पन्न थाय छे अने. त्यां अनुत्तर एवा विषयसुखने पामे छे अने त्यांथी चव्या सता अनुक्रमे संयमवाळा थया सता जे प्रकारे अंतक्रियाने
करशे, ए सर्व आ अंगने विष कहेवाय छे. आ अने वीजा एवा प्रकारना पदार्थों विस्तारथी कहेवाय छे । अनुत्तरोपपाति| कदशाने विषे संख्याती वाचना, संख्याता अनुयोगद्वार अने संख्याती संग्रहणी छे. ते आ अंगार्थकपणाए करीने नवमुं | अंग छे. तेमां एक श्रुतस्कंध, दश अध्ययनो, त्रण वर्ग, दश उद्देशनकाळ, दश समुद्देशनकाळ छे, तथा कुल संख्याता लाख | पदो कहेला छे, संख्याता अक्षरो यावत् ए प्रमाणे चरणकरणनी प्ररूपणा कहेली छे । ते आ प्रमाणे अनुत्तरोपपातिकदशा | में कही छे ॥ ९ ॥ सूत्र-१४४ ॥
टीकार्थः--'से किं तमित्यादि' जेनाथी कोइ पण उत्तर नथी ते अनुत्तर, तथा उपपात एटले जन्म, | संसारमा तेवा प्रकारना अन्यनो अभाव होवाथी अनुत्तर एटले प्रधान के जन्म जेनो तेज अनुत्तरोपपातिक कहेवाय
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