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समवायाङ्ग
सूत्र ॥
चो अंग
॥२३६॥
संग्रहणीओ। सेणं अंगाए नवमे अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा तिन्नि बग्गा दस उद्दे काला दस समुद्देणकाला संखेज्जाई पयसयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ता । संखेजाणि अक्खराणि जाव एवं चरणकरणपरूवणया आघविनंति । से त्तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ॥ ९ ॥ सूत्रम् - १४४॥
मूलार्थः - हवे ते अनुत्तरोपपातिकदशा कइ छे ? अनुत्तरोपपातिकदशाने विषे अनुत्तर विमानमां उत्पन्न थनाराना नगरो, उद्यानो, चैत्यो, वनखंडो, राजाओ, मातापिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, आलोक अने परलोकनी समृद्धि • विशेष, भोगनो त्याग, प्रव्रज्या, श्रुतनुं ग्रहण, तपोपधान, परित्याग, प्रतिमा, संलेखना, भक्तपानना प्रत्याख्यान, पादपोपगमन, अनुत्तर विमानमां उत्पत्ति, सारा कुळमां जन्म, फरीथी वोधिनो लाभ अने अंतक्रिया, ए सर्व कहेवाय छे। अनुतरोपपातिकदशाने विपे तीर्थकरना समवसरण के जे परम मंगळपणाए करीने जगतने हितकारक छे ते, घणा प्रकारना जिनेश्वरना अतिशयो, तथा जिनेश्वरना शिष्यों के जेओ साधुना समूहने विषे श्रेष्ठ गंधहस्ती समान छे, जेओ स्थिर यश. चाळा छे, जेओ परीपहना समूहरूपी शत्रुना सैन्यनुं मर्दन करनारा छे, जेओ तपवडे देदीप्यमान एवा चारित्र, ज्ञान अने सम्यक्त्ववडे सारभूत, विविध प्रकारना विस्तारवाळा अने प्रशस्त गुणे करीने सहित छै, तथा जेओ अनगार सता महर्षिओ छें, तथा जेओ उत्तम छे, श्रेष्ठ तपवाळा छे, अने विशेष प्रकारना ज्ञानयोगे करीने युक्त छे, तेवा अनगारना गुणोनुं वर्णन अहीं कहेवाय छे। तथा जेम भगवान महावीरस्वामीनुं शासन जगतने हितकर्ता छे, देव, असुर अने मनुष्योना जेवा
अनुत्तरोपपातिक परिचय |
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