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उपासक
दशा परिचय॥
विशेष, घणा प्रकारनी प्रतिमा, अभिग्रहनुं ग्रहण, तेनुं पालन, उपसर्ग सहन करवा, निरुपसर्ग, विचित्र तप, शीलवत, गुण, समवायाङ्ग विरमण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास, छेल्ली मरणांतिक संलेखनाना सेवनवडे पोताना आत्माने यथाप्रकारे भावीने घणा भोजनने
सूत्र॥ अनशनवडे छेदीने (त्याग करीने) उत्तम देवलोकने विपे उत्पन्न थया सता जे प्रकारे श्रेष्ठ देवोना उत्तम विमानोने विषे चोधुं अंग। अनुपम उत्तम सुखने क्रमवडे भोगवीने त्यारपछी आयुष्यने क्षये चव्या सता जे प्रमाणे जिनमतने विषे बोधिने पामीने उत्तम
चारित्रने पामीने अज्ञान अने पापना समूहथी मुक्त थया सता जे प्रकारे अक्षय अने सर्व दुःखथी रहित एवा मोक्षने पामे ॥२३२॥
छे, आ अने एवा बीजा पदार्थों आ अंगमा विस्तारथी कहेवाय छे. उपासकदशाने विपे वाचना परित्त छ, संख्याता अनुयोग द्वार छे, यावत् संख्याती संग्रहणी छे, ते आ अंगार्थकपणाए करीने सातमुंअंग छे, तेमां एक श्रुतस्कंध छे, दश अध्य. यनो छे, दश उद्देशनकाळ छे, दश समुद्देशन काळ छे, कुल संख्याता हजार पदो कहेला छे, संख्याता अक्षरो छे, यावत् आ प्रमाणे चरणकरणनी प्ररूपणा कहेवाय छे. । ते आ उपासकदशा में कही ॥७॥ सूत्र-१४२॥ ... टीकार्थ:--' से किं तमित्यादि-हवे कइ ते उपासक दशा छ ? उपासक एटले श्रावको, तेमा रहेली क्रियाना समूहने प्रतिपादन करनार दशा एटले दश अध्ययनवडे जणाती ते उपासकदशा कहेवाय छे. ते माटे कहे छे के-'उपासकदसासु णं'-उपासकदशाने विपे श्रावकोनां नगरो, उद्यानो, चैत्यो, वनखंडो, राजाओ, मातापिता,
समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, आ लोक परलोक संबंधी ऋद्धिविशेषो, तथा उपासको( श्रावको )ना शीलवत Ko एटले अणुव्रतो, विरमण एटले रागादिकनी विरति, गुण एटले गुणवतो, प्रत्याख्यान एटले नवकारसहित (नमुकारसही)
॥२३२।।