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________________ . उत्तमाई तओ आउक्खणं चुया समाणा जह जिणमयंमि बोहिं लध्धूण य संजमुत्तमं तमरयोधविमुक्ा उवेंति ह अक्खयं सवदुक्खमोक्खं । एते अन्ने य एवमाइअत्था वित्थरेण य । उवासयदसासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा जाव संखेज्जाओ संगहणीओ । से णं अंग सत्तमे अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा दस उद्देसणकाला दस समुद्दे सणकाला संखेजाइं पयस्यसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ता । संखेजाइं अक्खराइं जाव एवं चरणकरणपरूवणया आघ विनंति । से तं उवासगदसाओ ॥ ७ ॥ सूत्रम् - १४२ ॥ मूलार्थ:- ते उपासकदशा केवी छे ? उपासकदशाने विषे श्रावकोना नगरो, उद्यानो, यक्षना चैत्यो, वनखंडो, राजाओ, मातापिताओ, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, आ लोक अने परलोक संबंधी ऋद्धिविशेष कहेवाय छे, तथा श्रावकोना शीलत्रत, विरमण, गुण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास, ए सर्वनी प्रतिपत्ति एटले अंगीकार, तथा श्रुतनुं ग्रहण, तपोपधान, प्रतिमा, उपसर्ग, संलेखना, भातपाणीना प्रत्याख्यान, पादपोपगमन, देवलोकमां जयुं, त्यांथी चवीने उत्तम कुळमां जन्म पामवो, फरीथी वोधिनो लाभ अने अंतक्रिया ए सर्व कहेवाय छे. उपासकदशाने विषे श्रावकोनी ऋद्धिविशेष, पर्पदा, विस्तारथी धर्मनुं श्रवण, बोधिलाभ, अभिगम, सम्यक्त्वनी शुद्धता, स्थिरपणुं, मूळगुण अने उत्तरगुणना अतिचार, स्थिति
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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