SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषयानुक्रम॥ समवायाङ्ग स्त्र ॥ चोधु अंग ॥२१॥ शिना धर्मास्तिकाय विगेरे दश प्रकारो कया छे. पछी रूपी | तथा सर्वार्थसिद्ध पर्यंतना देवोनी स्थितिनो जघन्य अने। अजीवराशि विषे कयुं छे. पछी जीवराशिना संबंधमां प्रथम उत्कृष्ट काळ कह्यो छे. - पांच अनुत्तरोपपातिक कहीने पछी अनुक्रमे वे प्रकारना त्यारपछी ( १५२ मा सूत्रमा ) नारकी विगेरे चारे नारकी, साते नरक पृथ्वीनुं स्वरूप, असुरकुमार, नागकुमार, गतिना जीवोना औदारिक विगेरे पांच प्रकारना शरीरनी सुवर्णकुमार, वायुकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, विद्युत्- अवगाहना विगेरे कह्यु छे. कुमार, स्तनितकुमार अने अग्निकुमारना भवनो विगेरे तथा त्यारपछी ( १५३ मा सूत्रमा ) अवधिज्ञानना भेद, सुधर्मादिक बारे देवलोक, नव अवेयक, पांच अनुत्तर विमान विषय विगेरे नव द्वार, अवधिज्ञानना बे प्रकार, नरकमां ए सर्वना विमानो विगेरेनुं वर्णन संक्षेपथी कार्यु छे (ज्यां शीतादिक वेदना, लेश्या, आहार विगेरे कह्यु छे.. संक्षेप कह्यो छे त्यां टीकाकारे तेनो काइक विस्तार पण कर्यो छे.) त्यारपछी ( १५४ मा सत्रमा) छ प्रकारनो आयुष्य... त्यारपछी ( १५० मा सूत्रमा ) असुरकुमारना आवासो, बंध तथा विरहकाळ विगेरे कह्यो छे. पृथ्वीकायना आवासो( स्वस्थानो)थी आरंभी मनुष्य सुधीना त्यारपछी ( १५५ मा सत्रमा ) छ प्रकारना संहनन स्थानो, वानव्यतरना आवासो, ज्योतिषीना विमानो अने अने छ प्रकारना संस्थान का छे. वैमानिक देवोना आवासो कह्या छे.... . त्यारपछी ( १५६ मा सत्रमा ) पुरुषवेद विगेरे त्रण त्यारपछी ( १५१ मा 'सूत्रमा) नारकीओनी स्थिति | वेद कह्या छे.... ॥२१॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy