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.... (९०००) श्रीअजितनाथ प्रभुने साधिक नव हजार
अवधिज्ञानी हता. ( अहीं लाखना स्थानकमां हजारवें स्थानक लख्युं छे ते सूत्ररचनानुं विचित्रपणुं जाणवू ). .... (१००००००) पुरुषसिंह वासुदेवनुं कुल आयुष्य दश लाख वर्षनुं हतुं.
(१०००००००) श्रीमहावीरस्वामी पूर्वना छठ्ठा पोटिल मुनिना भवमा एक करोड वर्ष साधुपर्याय पाळीने सहस्रार देवलोकमां उत्पन्न थया हता.
(सागरोपम कोटाकोटिमुं स्थान ) श्रीऋषभदेव भगवानना निर्वाणथी छेल्ला श्रीमहावीरस्वामीना निर्वाण सुधी (४२००० वर्षे न्यून) एक कोटाकोटि सागरोपमर्नु आंतरं छे.
आ ग्रंथमा प्रथम स्थानथी आरंभीने कोटाकोटि सागरोपमना स्थान सुधीमा जे जे विषयो कह्या छे, ते सर्वे द्वादशांगीमा यथास्थाने बतावेला छे एटले के आ सर्व विषयोनुं
मूळ द्वादशांगी ज छे, तेथी हवे द्वादशांगीतुं स्वरूप बताव्यु छे. तेमां प्रथम बार अंगना आचारांग विगेरे नाम आपी पछी अनुक्रमे दरेक अंगमा केटला केटला श्रुतस्कंध, अध्ययनो, विषयो, वाचना, अनुयोगद्वार, प्रतिपत्तिओ, वेष्टक, श्लोकसंख्या, उद्देश, समुद्देश, कुलपदो, अक्षरो, गमा, पर्यवो, त्रस, स्थावर विगेरे कहेला छे. ते संबंधी संक्षेप आप्यो छे. छेवट बारमा दृष्टिवाद अंगमां सर्व पदार्थों कह्या छे. तेमां परिकर्म, सूत्र, पूर्व, अनुयोग अने चूलिका ए पांच भेदो आपी ते दरेकना भेदो विगेरे आप्या छे तथा चौदे पूर्वनां नाम अने ते दरेकमां जे विषयो कहेला छे ते संक्षेपथी देखाड्या छे.
त्यारपछी (१४९ मा सूत्रमा) द्वादशांगीमां मुख्य विषय जीव अने अजीव ए वे होवाथी जीवराशि अने अजीवराशि एवा बे भेद कही प्रथम अजीवराशिना रूपी अने अरूपी एवा बे भेद देखाड्या छे. पछी अरूपी अजीवरा