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विषयानु
क्रम॥
समवायाङ्ग
सूत्र॥ चोधुं अंग
॥२०॥
(६०००) सहस्रार कल्पमा छ हजार विमानो छे..
(७०००) रत्नप्रभा पृथ्वीना रत्नकांडना उपरना छेडाथी पुलककांडना नीचला छेडासुधी सात हजार योजननु आंतकै छे.
(८०००) हरिवर्प अने रम्यक क्षेत्रनो विस्तार साधिक आठ हजार योजननो छे. - (९०००) दक्षिणार्ध भरतक्षेत्रनी जीवा नव हजार योजन झाझेरी लांबी छे.
(१०००० ) मेरुपर्वत पृथ्वीतळमा दश हजार योजन विष्कंभवाळो छे. . (१०००००) आ जंबूद्वीपनो आयाम विष्कंभ एक लाख योजननो छे.
(२०००००) लवण समुद्र गोळ विष्कंभवडे वे लाख योजननो छे.
(३०००००) श्रीपार्श्वनाथ प्रभुने त्रण लाख ने सत्तावीश हजार श्राविकाओ हती.
(४०००००) धातकीखंड द्वीपनो गोळ विष्कंभ चार लाख योजननो छे.
(५०००००) लवण समुद्रना पूर्व छेडाथी पश्चिम छेडा सुधी पांच लाख योजन- आंतरं छे. ( वच्चे एक लाख योजननो जंबूद्वीप ने बे बाजु वे बे लाख योजन लवण समुद्र एम कुल पांच लाख जाणवा.)
(६०००००) भरत चक्रवर्तीए छ लाख पूर्व राज्य कयुं हतुं.
(७०००००) आ जंबूद्वीपनी पूर्व वेदिकाना अंतथी धातकीखंडना चक्रवालना पश्चिम छेडा सुधी सात लाख योजननु आंतरुं छे. .. (८००००० ) माहेंद्र कल्पमा आठ लाख विमानो छे.
॥२०॥