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छे, ते संक्षेपथी वे प्रकारे छे. ते आ प्रमाणे-चरित (थयेल) अने कल्पित. तेमां धर्मकथाना दश वर्ग छे, तेमां एक एक धर्मकथामां पांच पांच सो आख्यायिका छे. एक एक आख्यायिकामां पांच पांच सो उपाख्यायिका छे, एक एक उपाख्यायिकामां पांच पांच सो आख्यायिकोपाख्यायिका छे, ए प्रमाणे कुल साडा त्रण करोड आख्यायिकाओ छे एम में का छे. तेमां ओगणत्रीश उद्देशन काळ छे, ओगणत्रीश समुद्देशन काळ छे, संख्याता हजार कुलपदो कहेला छे, संख्याता अक्षरो छे, यावत चरणकरणनी प्ररूपणा कही छे । ते प्रमाणे आ ज्ञाताधर्मकथा में कही ॥६॥ सूत्र-१४१॥ ___टीकार्थः-' से किं तमित्यादि '-हवे ते ज्ञाताधर्मकथा कइ छ ? ज्ञात एटले उदाहरण, ते जेमा मुख्य छे एवी जे धर्मकथा ते ज्ञाताधर्मकथा कहेवाय छे, अहीं ज्ञाता ए ठेकाणे संज्ञाने लीधे दीर्घपणुं थयुं छे, अथवा पहेलो श्रुतस्कंध ज्ञात नामनो होवाथी ज्ञात, अने बीजो श्रुतस्कंध ते ज प्रमाणे (धर्मकथा नामनो होवाथी) धर्मकथा, त्यारपछी ज्ञात अने धर्मकथा ए वेनो द्वंद्व समास करवाथी ज्ञाताधर्मकथा एवं नाम थयु. तेमां प्रथम व्युत्पत्तिना अर्थने सूत्रकार देखाडता सता कहे छे-'नायाधम्मकहासु णमित्यादि'-ज्ञाताना एटले उदाहरणरूप करेला मेघकुमारादिकना नगरादिक कहेवाय छे. तेमां नगर विगेरे वावीश पदो सुगम छे, विशेष ए के-उद्यान एटले पुष्प, पत्र, फळ अने छायावाळा वृक्षोवडे शोभित एबुं वन के जेमा विविध प्रकारना वेषने धारण करनार अने मोटा मानवाळा घणा लोको भोजनने माटे आवता होय (उजाणी करवा आवता होय) ते, चैत्य एटले व्यंतरतुं देरुं, वनखंड एटले अनेक जातिना उत्तम वृक्षोवडे शोभित एवं वन, आ सर्वे कहेवाय छ। अहीं मूळमां यावत्' शब्द लख्यो छे तेथी बीजा पांच पदो जाणवा. तेना सूत्रनो अवयव आ प्रमाणे छे-'नायाधम्मे