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________________ समवायाङ्ग परिचय ॥ समवाया पत्र॥ चोधू अंग ॥२२२॥ तथा बीजा पण घणा प्रकारना विशेपो एटले जीव अजीवना धर्मों वर्णव्या छे एम संबंध करवो. ते धर्मोने जलेशथी कहे छे-'नरयेत्यादि'-तेमां निवास अने निवासवाळानो अभेद उपचार होवाथी नरक एटले नारकी लेवा. त्यारपछी नारकी, तिर्यच, मनुष्य अने देवसमूह संबंधी आहारादिक वर्णव्या छे. ते आहारादिक आ प्रमाणे-आहार-ओजआहार विगेरे. ते आभोगथी अने अनाभोगथी थयेलो आहार अनेक प्रकारनो छे, उच्छ्वास-अणु, समय विगेरे काळना भेदवडे करीने अनेक प्रकारवाळो, लेश्या-कृष्णलेश्या विगेरे छ प्रकारनी, आवासनी संख्या-जेमके नरकावासा चोराशी लाख छ इत्यादि, आयतप्रमाण-लंबाइनुं प्रमाण, ते पण आवासमुंज होय छे, जेमके संख्याता असंख्याता योजननी लंबाइ, आना उपलक्षणथी विष्कंभ, वाहल्य अने परिधिनुं प्रमाण पण अन्यत्र जाणवू, उपपात-एक समये आटला जीवोनी अथवा आटला काळना आंतराए करीने जीवोनी उत्पत्ति थवी ते, च्यवन-एक समये आटला जीवो मरे अथवा आटला काळे मरे ते, अवगाहना -अंगुलना असंख्येय भाग विगेरे जेटलं शरीरनुं प्रमाण होय ते, अवधि(ज्ञान)-अंगुलना असंख्येय भाग जेटला क्षेत्रनुं जाणवू विगेरे, वेदना-शुभ के अशुभ स्वभाववाळी वेदना, विधान-भेद, जेमके सात प्रकारना नारकी जीवो छे इत्यादि, उपयोगआभिनिबोधिक विगेरे बार प्रकारनो छ ते, योग-पंदर प्रकारनो मन, वचन, कायानो मळीने योग कहेवाय छे ते, इंद्रियो-श्रोत्रादिक पांच, अथवा द्रव्यादिकना भेदथी वीश अथवा श्रोत्रादिकना छिद्रादिकनी अपेक्षाए आठ छे ते, अने कपाय-क्रोधादिक. पछी आहार, उच्छ्वास विगेरे सर्वनो द्वंद्व समास करवो. तेमां छेल्ला कपाय शब्दने प्रथमार्नु बहुवचन आवे तेनो लोप करवो. (आ आहारादिक सर्वे वर्णव्या छे.) तथा विविध प्रकारनी जीवनी योनि एटले ॥२२२॥ १.
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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