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________________ IMIL जीवोनुं सचित्तादिक उत्पत्ति स्थान, तथा विष्कंभ एटले विस्तार, उत्सेध एटले ऊंचाइ, परिरय एटले परिधि, अने विधि विशेष-विधि एटले मेदो, जेमके जंबूद्वीप संबंधी धातकीखंड संबंधी, अने पुष्कराध संबंधी एवा भेदथी मेरु पर्वत त्रण प्रकारना छे, आवा प्रकारनी विधिनो विशेष एटले जंबूद्वीपनो मेरु लाख योजन ऊंचो छे, बाकीना मेरु पंचाशी हजार योजन ऊंचा छे ते, ए ज प्रमाणे वीजा पर्वतो विपे पण जाणवू, तथा कुलकर, तीर्थकर, गणधर, तथा समग्र भरतक्षेत्रना अधिपति-चक्रवर्तीओ तथा चक्रधर (वासुदेव ), हलधर (बळदेव ) ए सर्वना विधिविशेषो आश्रय कराय छे-कहेवाय छे एम संबंध करवो. तथा वर्ष एटले भरतादि क्षेत्रोना निर्गम एटले पहेलां करतां पछीनानुं अधिकपणुं, आ सर्व समवायमां एटले चोथा अंगमा वर्णव्यु छ एम संबंध करवो. हवे आ सूत्रनी हकीकतने समाप्त करता सता कहे छे-आ पूर्व कहेला पदार्थों तथा वीजा धनवात, तनुवात विगेरे पदार्थों आवा प्रकारना आ समवायने विषे विस्तारवडे समाश्रीयन्ते-आश्रय कराय छ अर्थात् अविपरीत ( यथार्थ) स्वरूप अने गुणे करीने शोभित एवा आ सर्वे पदार्थो बुद्धिवडे अंगीकार कराय छे, अथवा 'समस्यन्ते'-खोटी प्ररूपणाथकी साची प्ररूपणाने विपे स्थापन कराय छे. शेष सूत्र समाप्ति सुधीन पाठसिद्ध ( सुगम ) छे ॥ ४ ॥ सूत्र-१३९ ॥ . - हवे व्याख्याप्रज्ञप्ति नामनुं पांचमुं अंग (विवाह प्रज्ञप्ति-भगवती ) कहे छे- मू०-से किं तं वियाहे ? वियाहेणं ससमया विआहिजति परसमया विआहिज्जति ससम
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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