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________________ IPM 10 ॥२२१॥ पण घणा प्रकारना विशेषो जेवा के-नारकी, तिर्यच, मनुष्य अने देवना समूहना आहार, श्वासोच्छ्वास, लेश्या, आवा- कासमवायाङ्ग समवायाङ्ग सनी संख्या, आवासनी लंबाइ विगेरेनुं प्रमाण, उत्पत्ति, च्यवन, अवगाहना, अवधिज्ञान, वेदना, भेद, उपयोग, परिचय॥ योग, इंद्रिय अने कपाय वर्णव्या छे. तथा जीवोनी विविध प्रकारनी योनि वर्णवी छे. तथा मेरु विगेरे पर्वतोना बोधं अंग विष्कम, उत्सेध अने परिधिनुं प्रमाण तथा विशेष प्रकारना विधि वर्णव्या छे. तथा कुलकर, तीर्थंकर, गणधर, समग्र भरतना अधिपति चक्रवर्तीओ, वासुदेव अने बळदेवना विशेष विधिओ वर्णव्या छे. तथा क्षेत्रोना निर्गमो ( आ सर्वे) समवायमा वर्णव्या छे. आ अने ए विगेरे वीजा पदार्थों अहीं विस्तारथी कहेवाय छे । आ समवायांगनी वाचना परित्त (संख्याती) छे यावत् ते समवाय अंगार्थकपणाए करीने चो| अंग छे. तेमां एक अध्ययन छे, एक श्रुतस्कंध छे, एक उद्देशनकाळ छे, एक समुद्देशनकाळ छे, अने एक लाख ने चुमाळीश हजार कुल पदो कहेला छे । तेना अक्षरो संख्याता छे यावत् चरणकरणनी प्ररूपणा कराय छे । ते आ प्रमाणे समवायांग कयुं ॥४॥ सूत्र-१३९ ॥ टीकार्थः-से किं तमित्यादि-हवे आ समवाय कयो छ ? सूत्रमा प्राकृतपणाने लीधे वकारनो लोप करेलो होवाथी 'समाए' एम कडं छे. समवाय एटले परिच्छेद (जाणवू-ज्ञान), तेना हेतुरूप आ ग्रंथ पण समवाय कहेवाय छे. आ समवायवडे अथवा आ समवायने विषे स्वसमय सूचवाय छे (कहेवाय छे) इत्यादि सुगम छ । तथा समवायवडे अथवा समवायने विष एक, बे, त्रण, चार विगेरे सो सुधी अथवा कोटाकोटि सुधीना केटलाक पदार्थों एटले के सर्व पदार्थो G कही न शकाय तेथी केटलाक जीवादि पदार्थोनी एक उत्तर (अधिक ) जेमां होय ते एकोतरिका कहेवाय छे अहीं प्राकृत- GR२१॥ -
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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