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________________ आघविजंति । ठाणस्स णं परित्ता वायणा, संखेजा अणुओगदारा, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगट्ठयाए तइए अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस TT अज्झयणा, एकवीसं उद्देसणकाला, (एकवीसं समुद्देसणकाला,) बावत्तरिं पयसहस्साइं पयग्गेणं पन्नत्ताई । संखेज्जा अक्खरा, (अणंता गमा) अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपन्नत्ता भावा आघविजंति पण्णविजंति परूविजंति (दंसिर्जति) निदंसिज्जति उवदंसिर्जति । से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणया आघविजंति । से तं ठाणे ॥३॥ सूत्रम्-१३८॥ मूलार्थ:-ते स्थानांग कयु ? स्थानांगने विषे स्वसमय स्थापन कराय छे, परसमय स्थापन कराय छ, स्वसमय अने परसमय स्थापन कराय छे, जीव स्थापन कराय छे, अजीव स्थापन कराय छे, जीव अजीव स्थापन कराय छे, लोक स्थापन कराय छे, अलोक स्थापन कराय छे, लोक अलोक स्थापन कराय छ । स्थानांगवडे पदार्थना द्रव्य, गुण, क्षेत्र, काळ अने पर्यायो स्थापन कराय छ। पर्वत, नदी, समुद्र, सूर्य, भवन, विमान, आकर, नदी, निधि, पुरुषना प्रकार, स्वर, गोत्र अने ज्योतिपचार ए सर्व कह्या छे (१) । तथा एक प्रकारनुं वक्तव्य, वे प्रकारनुं वक्तव्य, यावत् दश प्रकारचं वक्तव्य |
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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