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भी समषायाङ्ग
धूत्रं ॥
पोयुं अंग
॥२१९॥
"कवा छे, तथा जीव अने पुद्गलनी प्ररूपणा कहेवाय छे, तथा लोकमां रहेला धर्मास्तिकायादिकनी प्ररूपणा कहेवाय छे । आ स्थानांगनी वाचना परित ( संख्याती ) छे, अनुयोगद्वार संख्याता छे, प्रतिपत्तिओ संख्याती छे, वेष्टक संख्याता छे, श्लोक संख्याता छे अने संग्रहणि संख्याती छे । आ स्थानांग अंगार्थकपणाए करीने त्रीजुं अंग छे, तेमां एक श्रुतस्कंध छे, दश अध्ययनो छे, एकवीश उद्देशनकाळ छे, एकवीश समुद्देशनकाळ छे, बोंतेर हजार कुल पदो छे, अक्षरो संख्याता छे, गमा अनंता छे, पर्याय अनंता छे, त्रस जीवो असंख्यात छे, स्थावर जीवो अनंता छे, ते सर्वे शाश्वता छे, करेला छे, निबद्ध छे, निकाचित छे, एम जिनेश्वरोए कहेला भावो आमां कहेवाय छे, प्रज्ञापन कराय छे, प्ररूपाय छे, देखाडाय छे, निदर्शाय छे, उपदेशाय छे, तेने भणनारनो आत्मा ए ज प्रमाणे एटले तद्रूप थाय छे, ए ज प्रमाणे जाणनार थाय छे, ए ज प्रमाणे विशेष जाणनार थाय छे ए जं प्रमाणे चरणकरणानी प्ररूपणा कराय छे. आ प्रमाणे स्थानांग कहां ||३|| सूत्र - १३८॥
टीकार्थः - हवे कयुं ते स्थान ? जेने विपे प्रतिपादन करवापणे जीवादिक पदार्थों स्थापन कराय ते स्थान कहेवाय छे. तेज कहे छे' ठाणेणमित्यादि ' - स्थानांगवडे अथवा स्थानांगने विषे जीवो स्थापन कराय छे एटले जीवनुं यथावस्थित स्वरूप प्रतिपादन करवा माटे जीवो कहेवाय छे एम भावार्थ जाणवो. शेष सूत्र प्राये पाठसिद्ध (सुगम) ज छे. विशेष ए के'ठाणेणं' ए फरीथी कहेवामां आव्यं ते पूर्व कहेलानुं सामान्यपणुं जणाववा माटे अने स्थापन करवा लायक विशेष पदार्थोंने ..कहेवा माटे आ वीजुं वाक्य कथं एम जणाववा माटे. तेमां 'दव्वगुणखेत्तकालपज्जव' अहीं प्रथमा विभक्तिना बहुवचननो
१ अहीं परित्ता शब्द असंख्यात वाचक छे.
स्थानाङ्गपरिचय ॥
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