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________________ समवायाङ्गः सूत्र ॥ चो अंग ॥२१८॥ मोक्ष अने सुगति एटले उत्तम देवपणुं अने उत्तम मनुष्यपणुं, ते सिद्धिसुगति कहीए, ते रूपी जे उत्तम गृह श्रेष्ठ प्रासाद तेनी उपर चडवाने माटे ' सोपान ' पगथियानी जेवा पगथीयारूप एवा, तथा ' निक्खोभ ' -वादीवडे क्षोभ न पमाडी काय एवा, तथा 'निष्पकंप - स्वरूपथी पण थोडा पण व्यभिचार दोपरूप कंपथी रहित एवा, कोण ? ते कहे छे' सूत्रार्थी ' सूत्र अने अर्थ एटले निर्युक्ति, भाष्य, संग्रहणि, वृत्ति, चूर्णि, पंजिका विगेरे. आवा सूत्र अने अर्थ कहेवाय छे. बाकी सर्व सुगम छे, ' तं सुयगडे त्ति '- विशेष ए के तेत्रीश उद्देशनकाळ आ प्रमाणे छे- “ चार, त्रण, चार, वे, वे अने अग्यार एम पहेला श्रुतस्कंधमां एक सरवाळा छे तथा बीजा श्रुतस्कंधमां सात महा अध्ययनो एक सरवाळा छे. " आ गाथाथी जाणवा ॥ २ ॥ सूत्र- १३७ ॥ . हवे त्रीजुं स्थानांग कहे छेः मू० - से किं तं ठाणे ? ठाणे णं ससमया ठाविजंति, परसमया ठाविज्जंति, ससमय पर समया ठाविज्जंति, जीवा ठाविज्जंति, अजीवा ठाविज्जंति, जीवाजीवा ठाविज्जंति, लोगा ठाविज्जंति, अलोगा ठाविज्जंति, लोगालोगा ठाविज्जंति, ठाणेणं दवगुणखेत्तकालपज्जव पयत्थाणं - ' सेला सलिला य समुद्दा, सूरभवणविमाणआगरणदीओ । णिहिओ पुरिसज्जाया, सरा य गोत्ता य जोइसंचाला ॥१॥ एक वित्तवयं दुविह जाव दसविहवत्तवयं, जीवाण पोग्गलाण य लोगट्ठाई च णं परूवणया स्थानाङ्ग परिचय ! ॥२१८॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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