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कंपायमान न थाय एवा सूत्र अने अर्थ आ अंगमां कहेला छ । आ सूत्रकृतांगनी वाचना परित्त (संख्याती) छ, अनुयोगद्वार संख्याता छे, प्रतिपत्तिओ संख्याती छे, वेष्टको संख्याता छे, श्लोको संख्याता छे, तथा नियुक्तिओ संख्याती छ। ते सूत्रकृतांग अंगार्थकपणाए करीने वीजं अंग छे, तेमां वे श्रुतस्कंध छ, त्रेवीश अध्ययनो छे, तेत्रीश उद्देशनकाळ छे, तेत्रीश समुद्देशनकाळ छे, कुल छत्रीश हजार पद कहेला छे । तेमां अक्षरो संख्याता छ, गमा अनंता छे, पर्यायो अंनता छ, त्रस जीवो असंख्याता छ, स्थावर जीवो अनंता छ । आ सर्वे शाश्वत छे, कृत छ, निवद्ध छे, निकाचित छे. आ सर्वे जिनेश्वरोए कहेला भावो आ अंगने विपे कहेवाय छे, प्रज्ञापना कराय छे, प्ररूपणा कराय छे, देखाडाय छ, निर्देश कराय छे, उपदर्शन कराय छ । जे साधु आने भणे छे तेनो आत्मा एज प्रमाणे तद्प ज थाय छ, एज प्रमाणे जाणकार थाय छ, एज प्रमाणे विशेष जाणकार थाय छ । आ प्रमाणे चरण करणनी प्ररूपणा कहेवाय छे, प्रज्ञापना कराय छे, प्ररूपणा कराय छ, देखाडाय
छे, निर्देश कराय छे, उपदर्शन कराय छ । ते आ प्रमाणे में सूत्रकृतांग कयुं छे ।। २॥ सूत्र-१३७॥ | . टीकार्थ:-हवे कयु ते सूत्रकृत छ ? अहीं 'सूच' धातु सूचवन करवू एवा अर्थमा प्रवर्ते छे. तेथी सूचवन करवाथी | सूत्र कहेवाय छे अने सूत्रवडे जे करायुं ते सूत्रकृत एम रूढिथी कहेवाय छे. 'सूयगडेणं ति'-सूत्रकृते करीने अथवा सूत्रकृतने विपे स्वसमय सूचवाय छे ( कहेवाय छे ) इत्यादि सूत्रो सुगम छे. तथा सूत्रकृते करीने जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध अने मोक्ष सुधीना पदार्थो सूचवाय छ । तथा 'समणाणमित्यादि'-अहीं साधुओनी मतिना गुणने शुद्ध करवा माटे स्वसमय स्थापन कराय छे एम वाक्यार्थ करवो. ते साधुओ केवा ? ते कहे छे-थोडा काळमां