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श्री
समवायाङ्ग
सूत्र ॥
चो अंग
॥२१५॥
जति उवदंसिज्जति । सेत्तं सूअगडे ॥ २ ॥ सूत्रम् - १३७ ॥
मूलार्थ:-- हवेकयुं ते सूत्रकृतांग छे १ सूत्रकृतांगने चिपे स्वसमय ( जिनमत ) नी सूचना कराय छे, परसमयनी सूचना कराय छे, स्वसमय अने परसमय बनेनी सूचना कराय छे, जीवोनी सूचना कराय छे, अजीवोनी सूचना कराय छे, जीव अजीवनी सूचना कराय छे, लोकनी सूचना कराय छे, अलोकनी सूचना कराय छे, लोक अलोकनी सूचना कराय छे। सूत्रकृतांगने विषे जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध अने मोक्ष पर्यंतना पदार्थोंनी सूचना कराय छे। श्रमणो (साधुओ) के जे थोडा काळथी प्रवजित थयेला छे, कुतीर्थिकना मोह (अज्ञान ) थी थयेला मोहवडे जेओनी मति मोह ( मूढता ) ने पामेली छे, ( कुसमयना समीपपणाने लीधे ) जेओने संदेह उत्पन्न थयो छे तथा स्वाभाविक बुद्धिना परिणामथी जेओने संदेह उत्पन्न थयो छे तेवा साधुओनी पापी अने मलीन बुद्धिना गुणने शुद्ध करवा माटे एक सो ने एंशी (१८०) क्रियावादीओ, चोराशी (८४) अक्रियावादीओ, सडसठ (६७) अज्ञानवादीओ अने वत्रीश (३२) विनयवादीओ कुल व्रण सो ने सठ (३६३) अन्य दर्शनीओनी रचना ( तिरस्कार- खंडन ) करीने स्वसमय ( जैन सिद्धांत ) स्थापन कराय छे. (हवे आ सूत्रकृतांगना सूत्र अने अर्थ केवा छे ? ते कहे छे ) विविध प्रकारे करीने ( परवादीओए पोतानो मत स्थापन करवा माटे कला ) दृष्टांत अने हेतुना वचनोने सारी रीते निःसार करीने देखाडता, विविध प्रकारना विस्तारनुं प्रतिपादन अने अत्यंत सत्यतारूप गुणे करीने सहित, मोक्षमार्गमां उतारनारा, उदार, अज्ञानरूपी अत्यंत अंधकारखडे दुर्गम एवा तत्त्वमार्गने विषे दीवारूप, मोक्ष अने सुगतिरूप उत्तम प्रासाद उपर चडवाना पंगथियारूप, कोइथी क्षोभ न पामे एवा अने
सुअगडांग परिचय |
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