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आचारांग परिचय।
समवाया
लोग
॥२१३॥
अने उद्देशा आ चारेनो एक ज उद्देशनकाळ छे. एज प्रमाणे शस्त्रपरिज्ञा विगेरे पचीश अध्ययनोने विप अनुक्रमे सात १, छ २, चार ३, चार ४, छ ५, पांच ६, आठ ७, सात ८, चार ९, अग्यार १०, त्रण ११, त्रण १२, बे १३, वे १४, वे १५, बे १६, आटली (७६) संख्यावाळा उद्देशनकाळ सोळ अध्ययनना मळीने छे तथा बाकीना नव अध्ययनना नव ज छे. आ अर्थ जणावनार संग्रह गाथानो अर्थ आ प्रमाणे छे-" सात, छ, चार, चार, छ, पांच, आठ, सात, चार, अग्यार, त्रण, त्रण, वे, वे, बे, वे, सात, एक, एक. इति । एज प्रमाणे समुद्देशनकाळ पण तेटला ज कहेवा । वळी आ आचारना कुल पदोए करीने अढार हजार पदो कहेला छे. अहीं ज्यां अर्थनी प्राप्ति थाय ते पद कहेवाय छे. अहीं कोइ शंका करे छे के-अहीं जो वे श्रुतस्कंध, पचीश अध्ययन अने अढार हजार कुल पद छे, तो "नव ब्रह्मचर्य अध्ययनना कुल अढार हजार पद छे" एम जे का छे ते केम विरुद्ध नथी ? आनो उत्तर कहे छे के-चे श्रुतस्कंध विगेरे जे कह्यं ते आचारनु प्रमाण कयु, अने वळी जे अढार हजार पद कह्या ते नव ब्रह्मचर्य अध्ययनरूप पहेला श्रुतस्कंधनुं प्रमाण का छे केम के सूत्रनो अर्थ विचित्र होय छे, तेथी तेनो अर्थ गुरुना उपदेशथी जाणवा लायक छ । तथा वेष्टकादिक संख्याता होवाथी आना अक्षरो संख्याता छ, तथा गमा अनंत छे, अहीं गमा एटले अर्थगमा ग्रहण कराय छे अर्थात् अर्थना परिच्छेद, ते अनंता छे. केम के एक ज सूत्रथकी ते ते धर्मवाळा अनंत धर्मवाळी वस्तुनी प्राप्ति थाय छे तेथी । अन्य आचार्यों तो आ प्रमाणे कहे छ के-अभिधान अने अभिधेयने आश्रीने गमा थाय छे, ते अनंता छे. तथा पर्यायो एटले स्व अने पर एवा मेदवडे जुदा अक्षरार्थना पर्यायो अनंता छे. तथा त्रस जीवो परित्त कहेवाय छे एवो संबंध करवो. अहीं जे त्रास पामे ते त्रस द्वींद्रिय
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