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नव्याने विषे पदार्थोनी प्राप्ति अथात् मा वचननी संकलना ते संख्यात
घटना-विशेष
संख्याती छे परंतु आदि अने अंतनी प्राप्ति छे माटे अनंती नथी. शुं संख्याती छे ? सूत्र अने अर्थ भणाववारूप वाचना संख्याती छ अथवा अवसर्पिणी अने उत्सर्पिणीरूप काळने आश्रीने संख्याती छे, तथा उपक्रमादिक अनुयोगद्वार संख्याता छ, केम के तेना अध्ययनोज संख्याता छे अने वळी ते प्रज्ञापक( आचार्य )ना वचननो विपयरूप छे तेथी, तथा संख्याती प्रतिपत्तिओ छे एटले द्रव्यार्थने विषे पदार्थोनी प्राप्ति अर्थात् मतांतरो अथवा प्रतिमादिक अभिग्रहविशेषो संख्याता छ, तथा | वेष्टक एटले छंदविशेष अथवा कोइना मतमा एक अर्थने कहेनारी वचननी संकलना ते संख्यात छे, तथा श्लोक एटले
अनुष्टुप् छंद संख्याता छ, तथा निर्युक्तनी एटले सूत्रमा अभिधेयपणे स्थापन करेला अर्थोनी युक्ति एटले घटना-विशेष प्रकारनी योजना तेरूप निर्युक्तयुक्ति संख्याती छे, आ वाक्यमा 'युक्त' शब्दनो लोप करवाथी नियुक्ति कहेवाय छे, आ निक्षेपनियुक्ति विगेरे संख्याती छे । 'से णमित्यादि'-णं शब्द वाक्यनी शोभा माटे छे. ते आचार अंगार्थपणाए करीने एटले अंगरूप वस्तुए करीने प्रथम अंग स्थापनानी अपेक्षाए कयुं छे, पण रचवानी अपेक्षाए तो आ वारसुं अंग छे. केम के पूर्वमा रहेली वस्तु सर्व प्रवचननी पहेलां रचीछे तेथी ते पहेलुं छे. तथा आमां बे श्रुतस्कंध एटले अध्ययनना समूह छ, तथा पचीश अध्ययनो छे. ते आ प्रमाणे-"शत्रपरिज्ञा १, लोकविजय २, शीतोष्णीय ३, सम्यक्त्व ४, आवंती ५, धूत ६, विमोह ७, महापरिज्ञा ८, उपधानश्रुत ९, आ पहेलो श्रतस्कंध थयो. तथा पिंडैपणा १, शय्या २, ईर्या ३, भापा ४, वस्त्रैपणा. ५, पात्रैषणा ६, अवग्रहप्रतिमा ७, सप्तसप्ततिका १४, भावना १५ अने विमुक्ति १६, आ बीजो शुतस्कंध थयो." आ प्रमाणे निशीथने वर्जीने आ पचीश अध्ययनो छे. तथा उद्देशनना काळ पंचाशी छे. केवी रीते? ते कहे छे-अंग, श्रुतस्कंध, अध्ययन