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विगेरे, तेओ परिमित (असंख्याता) छे पण अनंत नथी. केम के तेओर्नु एवं ज स्वरूप छे. तथा वनस्पतिकाय सहित थइने स्थावर जीवो अनंता छे. आ सर्वे केवा छे ? ते कहे छे-'सासया' एटले द्रव्यार्थपणाए करीने कायम होवाथी शाश्वता छे, 'कडा' पर्यायार्थपणाए करीने समये समये बदलाता होवाथी करेला छे, 'निवद्धा' सूत्रमा ज ग्रथित-गुंथेला छे, तथा 'निकाइआ'-नियुक्ति, संग्रहणि, हेतु, उदाहरण विगेरेवडे प्रतिष्ठित छे. तथा जिनेश्वरोए कहेला भावो-पदार्थों बीजा पण अजीवादिक छे ते सर्वे 'आघविजंति'-प्राकृत शैलीए करीने आ पद छे ते संस्कृतमां 'आख्यायन्ते' एटले सामान्य अने विशेषवडे कहेवाय छे. 'प्रज्ञाप्यन्ते ' एटले नामादिकना भेद कहेवावडे कहेवाय छे 'प्ररूप्यन्ते' एटले नामादिकनुं स्वरूप कहेवावडे कहेवाय छे, जेम के पर्यायर्नु अभिधेय एटले नाम इत्यादि. — दयन्ते ' एटले मात्र उपमावडे देखाडाय छे, जेम के जेवो बळद तेवो गवय छे इत्यादि.'निदश्यन्ते' एटले हेतु अने दृष्टांत कहेवावडे देखाडाय छ, 'उपदर्यन्ते ' एटले उपनय अने निगमनवडे अथवा सर्व नयना अभिप्रायवडे देखाडाय छ । हवे | आचारांगना ग्रहण- फळ देखाडवा माटे कहे छ-' से एवमित्यादि'-'सः' एटले आचारांगने ग्रहण करनार जाणवो. 'एवं आयत्ति'-आ (आचारांग) भावथी सम्यक् प्रकारे भणे सते आ प्रमाणे आत्मा थाय छे (आत्मा आचाररूप
ज थाय छे) केम के ते( आचारांग)मां कहेली क्रियाना परिणामथी अभिन्न (परिणामरूप ) दोवाथी ते आत्मा पण | तदूप ज थाय छे. आ ( एवं आय ) सूत्र पुस्तकोमा जोयुं नथी, परंतु नंदीसूत्रमा देखाय छे, तेथी अहीं तेनी व्याख्या करी छे. आ प्रमाणे ज्ञाननो सार क्रिया जछे एवं जणाववा माटे क्रियानो परिणाम कहीने हवे ज्ञानने आश्रीने कहे छे