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________________ समवाय . अगाराओ अणगारियं पवइए।१॥६०००००॥ सूत्रम्-१२९॥ समवायाङ्ग मूलार्थ:-भरत नामना चातुरंत चक्रवर्ती राजा छ लाख पूर्व राज्य मध्ये वसीने पछी मुंड थइने गृहथकी अनगारस्त्र ॥ पणे प्रव्रजित थया हता (१)॥६०००००।सूत्र-१२९ ।। चोथु अंग हवे सात लाखमुं स्थान कहे छे-- Roeno मू०--जंबूदीवस्स णं दीवस्स पुरच्छिमिल्लाओ वेइयंताओ धायइखंडचकवालस्स पञ्चच्छिमिल्ले चरमंते एस णं सत्त जोयणसयसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते ।१॥ ७००००० ॥ सूत्रम्-१३० ॥ . मूलार्थ:--जबूद्वीप नामना द्वीपनी पूर्व तरफनी वेदिकाना अंतथी धातकीखंडना चक्रवालना पश्चिम छेडा सुधी सात लाख योजन- अबाधाए आंतरं कर्तुं छे (१) ॥७०००००॥ टीकार्थ:--'जंबूदीवस्सेत्यादि'-तेमां जंबूद्वीपना एक लाख, लवणसमुद्रनावे लाख अने धातकीखंडना च 14 लाख मळीने सात लाख योजन- आंतरुं सूत्रमा कह्या प्रमाणे थाय छे (१) ॥ ७००००० ।। सूत्र-१३० ।। 3. हवे आठ लाखमुं स्थान कहे छे-- मू-माहिंदे णं कप्पे अट्ठ विमाणावाससयसहस्साइं पन्नत्ताई।१॥ ८०००००॥सूत्रम्-१३१॥ मूलार्थ:--माहेंद्र कल्पने विषे आठ लाख विमानो कह्या छ (१) ॥८०००००॥ सूत्र-१३१॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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