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श्री.
समवाय १०००।
समवायाङ्ग
मंत्र॥ चोथं अंग
॥२०४॥
प्रमाणे नंदनना बीजा कूटने वर्जीने बलकूट पण (हजार योजन उंचो) कहेवो (६)। श्रीअरिष्टनेमि अरिहंत एक हजार वर्षनुं सर्व आयु पाळीने सिद्ध थया, बुद्ध थया, यावत् सर्व दुःख रहित थया (७)। श्रीपार्श्वनाथ अरिहंतने एक हजार जिन (केवळी) हता (८)। श्रीपार्श्वनाथ अरिहंतना एक हजार शिष्यो काळधर्म पाम्या, यावत् सर्व दुःख रहित थया (९)। पद्मद्रह अने पुंडरीकद्रह एक एक हजार योजन (पूर्व पश्चिम) लांबा कया छे (१०)॥१०००॥
टीकार्थः-'सव्वे वि णं जमगेत्यादि'---उत्तरकुरुमां नीलवंत वर्षधर पर्वतनी उत्तर तरफ शीता महानदीना बन्ने किनारे यमक नामना बे पर्वतो छे, ते पांचे उत्तरकुरुने विषे बवे होवाथी कुल दश छे (२)। एज प्रमाणे चित्र अने विचित्र कूट पण पांचे देवकुरुने विषे यमकनी जेम होवाथी पांच चित्रकूट अने पांच विचित्रकूट छ (३)। 'सव्वे वि णमित्यादि'-सर्वे वृत्तवैताठ्यो, ते शब्दापाती विगेरे वीश छे (४)।' सव्वे वि णं हरीत्यादि'-हरिकूट विद्युत्प्रभ नामना गजदंतने आकारे रहेला वक्षस्कार पर्वत उपर छे, अने हरिस्सहकूट तो माल्यवान नामना वक्षस्कार पर्वत उपर छे, ते पांचे मेरु संबंधी होवाथी पांच पांच छे अने ते हजार हजार योजन उंचा छे. वक्षस्कार उपरना आ बे कूटने वर्जीने एटले वक्षस्कार पर रहेला वीजा कूटने विषे आटली ऊंचाइ नथी. आने विषे ज छे एम भावार्थ जाणवो (५)।एज प्रमाणे बळकूट पण जाणवा एटले के पांच मेरुने विषे पांच नंदनवनो छे, ते दरेकनी ईशान विदिशामां बळकूट नामे कूट छे, तेथी ते नामना कूट पांच छे, अने ते एक एक हजार योजन ऊंचा छे. अहीं नंदनवनना बळकूटने वर्जीने एटले नंदनवनमा रहेला वाकीना दरेक पूर्वादि दिशा अने विदिशामा रहेला चाळीश नंदनकूटो छे, ते हजार योजन ऊंचा नथी, तेथी ते वर्जवाना
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