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समवाय ९९॥
श्री ... समवाया
-सूत्र ॥ चोथु अंग ॥१९॥
कहेला भावार्थने अनुसारे जाणवो, विशेप ए के-'एकतालीसइमे' एवो पाठ कोइ पुस्तकोमा देखाय छे ते खोटो पाठ । छे. 'एगूणपंचासइमे त्ति'--ओगणपचासने बमणा करवाथी अठाणु थाय छे. चमणा करवानुं कारण ए छे के-दरेक मांडले दिवस अथवा रात्रिमा एकसठीया वे भागनी वृद्धि थाय छे तेथी (५)। 'रेबईत्यादि'--रेवति नक्षत्र छ पहेलं जेने ते रेवति प्रथम कहेवाय छे ( बहुव्रीहि समास ) तथा जेष्ठा नक्षत्र छे छेल्लं जेने ते ज्येष्ठापर्यवसान कहेवाय छे (बहुव्रीहि समास ), पछी बन्नेनो कर्मधारय समास करवो. ते ओगणीश नक्षत्रोनी अठाणु ताराओ ताराना परिमाणवडे कही छे. ते आ प्रमाणे-रेवति नक्षत्रनी बत्रीश तारा छे ३२, अश्विनीनी त्रण तारा छे ३५, भरणीनी त्रण तारा छे ३८, कृत्तिकानी छ तारा छे ४४, रोहिणीनी पांच तारा छे ४९, मृगशिरनी त्रण तारा छे ५२, आर्द्रानी एक तारा छे ५३, पुनर्वसुनी पांच तारा छे ५८, पुष्यनी त्रण तारा छे ६१, अलेपानी छ तारा छे ६७, मघानी सात तारा छे ७४, पूर्वाफाल्गुनीनी बे तारा छे ७६, उत्तराफाल्गुनीनी बे तारा छे ७८, हस्तनी पांच तारा छे ८३, चित्रानी एक तारा छे ८४, स्वातिनी एक तारा छे ८५, विशाखानी पांच तारा छे ९०, अनुराधानी चार तारा छे ९४, अने ज्येष्ठानी त्रण तारा छे ९७. आ सर्व ताराओ मळीने कहेली संख्या थाय छे, तेमां एक तारा ओछी थइ ते ग्रंथांतरना अभिप्रायथी जाणवी. आ ग्रंथना अभिप्राये तो कोई एक नक्षत्रनी एक अधिक तारा संभवे छे, तेथी कह्या प्रमाणे तेनी संख्या जाणवी (७)॥ सूत्र-९८॥
हवे नवाणुमुं स्थान कहे छे- मू०-मंदरे णं पवए णवणउइ जोयणसहस्साई उड्डे उच्चत्तेणं पन्नत्ते । १ । नंदणवणस्स णं
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