________________
तना एकसठीया अठाणु भाग रात्रिक्षेत्रनी हानि करीने अने दिवसक्षेत्रनी वृद्धि करीने सूर्य गति करे छे (६)। रेवति नक्षथी आरंभीने ज्येष्ठा नक्षत्र सुधीना ओगणीश नक्षत्रोनी मळीने अठाणु ताराओ ताराना प्रमाणवडे कह्या छे (७) ।
टीकार्थः-हवे अठाणुमा स्थान विपे कांइक कहे छे-'नंदणवणेत्यादि-आनो भावार्थ आ प्रमाणे छे-मेरु पर्वतर्नु नंदनवन पांच सो योजन ऊंची पहेली मेखळामा रहेलुं छे, ते पण तेमां (वनमा) रहेला पांच सो योजन ऊंचा आठ कूटनु आ बनना ग्रहणवडे ग्रहण थाय छे माटे पांच सो योजन उंचुं छे ( कुल एक हजार योजन थया). तथा पंडक वन मेरु पर्वतना शिखर पर रहेलं छे, तेथी मेरुनी ऊंचाइ नवाणु हजार योजननी छे, तेमाथी उपरना एक हजार बाद करतां कह्या प्रमाणे अठाणु हजार योजननु आंतरं थाय छ (१)। गोस्तुभना सूत्रनो भावार्थ पूर्वनी जेम ज छे. विशेष ए केगोस्तुभनो विष्कंभ एक हजार योजननो छे ते ( सत्ताणुमां) नांखवाथी अहीं कह्या प्रमाणे (अठाणु हजार योजनन)। आंतरं थाय छे (२)। वेयड्वस्त णमित्यादि'-कोइ पुस्तकमां आ पाठ देखाय छे ते खोटो पाठ छे साचो पाठ आ प्रमाणे छे-" दाहिणभरहवस्स णं धणुपिटे अहाणउइं जोयणसयाई किंचूणाई आयामेणं पन्नत्ते" इति । कारण के अन्य स्थळे कह्यु छ के-" नव हजार छ सो ने सात योजन तथा उपर एक कळा (९६०७१) आटलं दक्षिण भरतनुं धनुःपृष्ठ छे." ( ते बराबर नथी. ९८०० मा कांइक ऊण एटले ९७६६० योजन धनुःपृष्ठ छे) तथा
वैताढ्यनुं धनुःपृष्ठ अन्य स्थळे आ प्रमाणे कयुं छे-" दश हजार, सात सो ने तेंताळीश योजन तथा उपर पंदर कळा | FEIL (१०७४३१५) आटलं वैतादयतुं धनुःपृष्ठ छे" (ते बराबर छे) (४)। 'उत्तराओ णमित्यादि-आनो भाव