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________________ श्री समवायाङ्ग सूत्र ॥ चो अंग ॥१९३॥ किंचूणाई आयाणं पन्नत्ते । ४ । उत्तराओ णं कट्ठाओ सूरिए पढमं छम्मासं अयमाणे एगूपति मंडल अट्ठाणउइ एकसद्विभागे मुहुत्तस्स दिवसखेत्तस्स निवुत्ता रयणिखेत्तस्स अभिनिवुत्ता णं सूरिए चारं चरइ । ५ । दक्खिणाओ णं कट्ठाओ सूरिए दोघं छम्मासं अयमाणे • गूणपन्नास मे मंडलगते अट्ठाणउइ एकसट्टिभाए मुहुत्तस्स रयणिखित्तस्स निवुड्डेत्ता दिवस - खेल अभिनित्ताणं सूरिए चारं चरइ । ६ । रेवईपढमजेद्वापज्जव साणाणं एगूणवीसाए नक्खत्ताणं अट्ठाणउइ ताराओ तारग्गेणं पन्नताओ । ७ ॥ सूत्रम् - ९८ ॥ सूलार्थ:- नंदनवननी उपरना चरमांतथी पांडुकवननी नीचेना चरमांत सुधी अड्डाणु हजार योजननुं अवाधाए आंतरुं कहेलुं छे (१)। मेरु पर्वतनी पश्चिमना चरमांतथी गोस्तुभ नामना आवास पर्वतना पूर्व चरमांत सुधी अडाणु हजार योजननुं अबाधाए आंतरुं कर्तुं छे (२) । एज प्रमाणे चारे दिशामां जाणवुं (३) । दक्षिण भरतार्धनुं धनुःपृष्ठ कांइक ओछा अहाणु सो योजन लंबामांकयुं छे (४) । उत्तर दिशामां प्रथम छ मास सुधी चालतो ( सर्व आभ्यंतर मंडळ थकी ) ओगणपचासमे मांडले रह्यो सतो एक मुहूर्त्तना एकसठीया अडाणु भाग दिवसक्षेत्रनी हानि करीने अने रात्रि क्षेत्रनी वृद्धि करीने सूर्य चार चरे छे-गति करे छे (५) । तथा दक्षिण दिशामां बीजा छ मास सुधी चालतो सूर्य ओगणपचासमे मांडळे रह्यो सतो एक मुहू समवाय ९८ ॥ ॥१९३॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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