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मृलार्थः-मेरु पर्वतना पश्चिमना चरमांतथी गोस्तूभ नामना आवास पर्वतना पश्चिमना चरमांत सुधी सत्ताणुं हजार योजन- अबाधाए आंतरूं का छे (१)। एज प्रमाणे चारे दिशा संबंधी कहेवू (२)। आठे कर्मप्रकृतिनी सत्ताणुं उत्तरप्रकृतिओ कहेली छे (३)। हरिषेण नामना चातुरंत चक्रवर्ती राजा कांइक ओछा सत्ताणुं सो वर्ष सुधी गृहवासमां बसी मुंड थइ यावत् प्रव्रजित थया (४)॥
टीकार्थ:--हवे सत्ताणुमा स्थान विपे कांइक लखे छे--मंदरेत्यादि'--आनो भावार्थ आ प्रमाणे छे--मेरुना | पश्चिम छेडाथी जंबूद्वीपनो छेडो पंचावन हजार योजन दूर छे, त्यांथी उताळीश हजार योजन दूर गोस्तुभ पर्वत छ, तेथी कहेलं आंतलं मळतुं आवे छे (१)। हरिषेण नामना दशमा चक्रवर्ती काइक ओछा सत्ताणु सो वर्ष घरवासमा रह्या अने कांइक अधिक त्रण सो वर्ष दीक्षानुं पालन कर्यु, केमके तेनुं सर्व आयुष्य दश हजार वर्पनुं हतुं ॥ ( ४ ) ॥ सूत्र-९७ ॥
हवे अठाणुमुं स्थान कहे छे___ मू-नंदणवणस्स णं उवरिल्लाओ चरमंताओ पंडुयवणस्स हेटिल्ले चरमंते एस णं अट्ठाणउइ | जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते । १ । मंदरस्स णं पव्वयस्स पञ्चच्छिमिल्लाओ चरमंताओ
गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पुरच्छिमिल्ले चरमंते एस णं अट्ठाणउइ जोयणसहस्साई अबाहाए | अंतरे पन्नत्ते । २ । एवं चउदिसि पि । ३ । दाहिणभरहड्डस्स णं धणुप्पिटे अट्ठाणउइ जोयणस
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