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समवाय
श्री समवायाङ्ग
चोएं अंग
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. जेनावडे गाउ विगेरेनु प्रमाण कहेवाय छे ते, परंतु अव्यावहारिक दंड तो कहेला प्रमाणथी नानो अथवा मोटो होइ शके छे.
केमके दंडनुं प्रमाण चार हाथर्नु कहेलं छे अने एक हाथना चोवीश अंगुल कया छे, तथी चोवीशने चारे गुणतां छन्नु थाय जछे (३)। 'अम्भितरओ इत्यादि'--आभ्यंतर एटले आभ्यंतर मंडळने आश्रीने पहेलं मुहूर्त छन्नु अंगुलनी छायावालू का छे. अहीं भावार्थ आ प्रमाणे छे—सूर्य जे दिवसे सर्व आभ्यंतर मंडळने विष चार चरे छे-गति करे छे, ते दिवसर्नु पहेलं मुहूर्त बार अंगुलना शंकुने आश्रीने छन्नु आंगळनी छायावाडं थाय छे. ते आ प्रमाणे-आ दिवस अढार मुहूर्त्तना प्रमाणवाळो होय छे तेथी दिवसनो अढारमो भाग ते एक मुहूर्त थाय छे. तेथी छायागणितनी रीते वार अंगुलना शंकुने छेदरूप अढारवडे गुणवा, तेथी बसो ने सोळ (२१६) थाय छे, तेने अर्ध करवाथी एक सो ने आठ (१०८) थाय छे. तेमाथी शंकुतुं प्रमाण बार आंगळनुं छे ते बार बाद करवाथी छन्नुं अंगुल प्राप्त थाय छे (५)॥ सूत्र-९६ ॥
हवे सत्ताणुमुं स्थान कहे छे-- - मू०-मंदरस्स णं पव्वयस्स पञ्चच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोथुभस्स णं आवासपव्वयस्स पञ्चच्छिमिल्ले चरमंते एस णं सत्ताणउइ जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते ।। एवं चउदिसि पि।। अट्ठण्हं कम्मपगडीणं सत्ताणउइ उत्तरपगडीओ पन्नत्ताओ। ३ । हरिसेणे णं राया चाउरंतचकवट्टी देसूणाई सत्ताणउइ वाससयाई अगारमज्झे वसित्ता मुंडे भविचाणंजाव पवइए।४॥ सूत्रम्-९७॥
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