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विषयानुक्रम।।
समवाया
सूत्र॥ घो\ अंग
उत्तरप्रकृतिओ छे. ( एमां नामकर्मनी ४२ गणेल छे.) । राणु सो अवधिज्ञानी हता.
(९२) वाणु प्रतिमाओ विशेष प्रकारना अभिग्रह- (९५) श्रीसुपार्श्वस्वामीने पंचाणु गणो अने पंचाणु रूप कहेल छे, इंद्रभूति गणधर बाणु वर्पर्नु कुल आयुष्य गणधरो हता, जंबूद्वीपना छेडाथी चारे दिशामा लवणसमुपाळी सिद्ध थया, मेरु पर्वतना मध्यभागथी गोस्तूभ नामना द्रने विप पंचाणु पंचाणु हजार योजन जइए त्यारे चार आवास पर्वतना पश्चिम छेडा सुधीमां बाणु हजार योजन
पाताळकळशो आवे छे, लवणसमुद्रनी बन्ने बाजुए पंचाणु आंतरं छे, ए ज प्रमाणे बाकीना त्रणेनुं जाणवू.
पंचाणु प्रदेशो ऊंडाइ अने ऊंचाइनी हानिना विषयमा कहेला - (९३) श्रीचंद्रप्रभ प्रभुने त्राणु गण अने त्राणु
छे, श्रीकुंथुनाथ प्रभु पंचाणु हजार वर्षतुं कुल आयुष्य पाळीने गणधरो हता, श्रीशांतिनाथ प्रभुने त्राणु सो चौदपूर्वी हता, सिद्ध थया, स्थविर मौर्यपुत्र पंचाणु वर्षनुं कुल आयुष्य त्राणुमा मंडळे रहेलो सूर्य आभ्यंतर मंडळ तरफ जतो अथवा पाळीने सिद्ध थया. बाह्य मंडळ तरफ जतो सरखा अहोरात्रने विषम करे छे (९६) दरेक चक्रवर्ती राजाने छन्नु करोड गाम अर्थात् त्राणुमा मंडळमां आवे छे, त्यारे समपणुं अहो- होय छे, वायुकुमार देवना भवनावासा छन्नु लाख छ, राजनुं मटीने विषमपणुं थाय छे.
व्यावहारिक दंड छन्नु आंगळ लांबो होय छे, एज प्रमाणे (९४) निपध अने नीलवंत पर्वतनी जीवा साधिक धनुष, नालिका, धोंसरु, धरी अने सांबेल पण छन्नु छन्नु चोराणु हजार योजननी छे, श्रीअजितनाथस्वामीने चो- | आंगळना होय छे, सूर्य आभ्यंतर मंडळमां होय त्यारे पहेलु
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