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योजननं आंतरुं छे, एज प्रमाणे रुक्मीना कूटनुं पण जाणवुं.
( ८८ ) दरेक चंद्र-सूर्यने अठ्ठाशी अठ्ठाशी महा ग्रहोरूप परिवार छे, दृष्टिवादना अठ्ठाशी सूत्रो छे, मेरु पर्व - • तना पूर्व छेडाथी गोस्तूभ नामना आवास पर्वतना पूर्व छेडा • सुधी अठ्ठाशी हजार योजननं आंतरुं छे, एज प्रमाणे बाकीनी त्रणे दिशामां जाणवुं, सर्व आभ्यंतर मंडळरूप बहारनी उत्तर दिशाथी दक्षिणायन तरफ आवतो सूर्य चुमाळीशमा मंडळे आवे त्यारे मुहूर्त्तना एकसठीया अठ्ठाशी भाग जेटली दिवसनी हानि करीने अने तेटली ज रात्रिनी वृद्धि करीने चाले छे, तथा दक्षिण दिशाथी उत्तरायण तरफ आवतो सूर्य चुमालीशमा मंडळे आवे त्यारे मुहूर्त्तना एकसठीया अठ्ठाशी भाग जेटली रात्रिनी हानि करीने अने तेटली ज दिवसनी वृद्धि करीने चाले छे.
( ८९ ) श्री ऋषभदेव भगवान आ अवसर्पिणीना
'त्रीजा आराने छेडे नेवाशी पखवाडीया बाकी रह्या त्यारे निर्वाण पाम्या, श्रीमहावीरस्वामी आ अवसर्पिणीना चोथा आराना नेवाशी पखवाडीया बाकी हता त्यारे निर्वाण पाम्या, हरिषेण नामना चक्रवर्तीए नेवाशी सो वर्ष सुधी राज्य भोगव्युं, श्रीशांतिनाथ प्रभुने नेवाशी हजार साध्वीओनी संपदा हती.
( ९० ) श्रीशीतळनाथ प्रभु नेवु धनुष ऊंचा हता, श्री अजितनाथ प्रभुने नेवुं गण अने नेवुं गणधरो हता, स्वयंभू वासुदेवे ने वर्ष दिग्विजय कर्यो हतो, सर्वे वृत्तवैताढ्य पर्वतोना उपरना छेडाथी सौगंधिक कांडना हेठला छेडा सुधी नेवं सो योजननुं आंतरुं छे.
( ९१ ) बीजानुं वैयावृत्त्यकर्म करवानी प्रतिमाओ 1. एकाणु छे, कालोदधिनी परिधि साधिक एकाणु लाख योजननी छे, श्रीकुंथुनाथ प्रभुने एकाणु सो अवधिज्ञानीओ हता, आयु ने गोत्र ए वे कर्म विना बाकीना छ कर्मनी एकाणु