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________________ दीवस्स चरमंताओ चउद्दिसिं लवणसमुदं पंचाणउइ पंचाणउइ जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता चत्तारि महापायालकलसा पन्नत्ता, तं जहा-वलयामुहे केऊए जूयए ईसरे।। लवणसमुद्दस्स उभओ पासं पिपंचाणउयं पंचाणउयं पदेसाओ उल्वेहुस्सेहपरिहाणीए पन्नत्ता।३। कुंथू णं अरहा पंचाणउइ वाससहस्साइं परमाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे जाव प्पहीणे । ४। थेरे णं मोरियपुत्ते पंचाणउइ वासाइं सवाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे जाव प्पहीणे । ५ । सूत्रम्-९५॥ ___ मूलार्थ:--श्रीसुपार्श्वस्वामी अरिहंतने पंचाणु गण अने पंचाणु गणधरो हता (१)। जंबूद्वीप नामना द्वीपना छेल्ला अंतथी चारे दिशामां लवण समुद्रमा पंचाणु पंचाणु हजार योजन प्रवेश करीए त्यारे त्यां चार महापातालकलशो कह्या छे. ते आ प्रमाणे-बडवामुख १, केतु २, युप ३ अने ईश्वर (४) । लवणसमुद्रनी बन्ने बाजुए पंचाणु पंचाणु प्रदेशो उद्वेध (ऊंडाइ) अने उत्सेध( ऊंचाइ )नी हानिना विषयमां कहेला छे (३)। श्रीकुंथुनाथ अरिहंत पंचाणु हजार वर्षनुं सर्व आयुष्य पाळीने सिद्ध थया, बुद्ध थया यावत् सर्व दुःखथी रहित थया (४) । स्थविर मौर्यपुत्र पंचाणु वर्षनुं सर्व आयुष्य पाळीने सिद्ध थया, बुद्ध थया, यावत् सर्व दुःखथी रहित थया (५)॥ टीकार्थ:--हवे पंचाणुमा स्थान विषे कांइक लखे छे-लवण समुद्रनी बन्ने पासे पंचाणु प्रदेशो उद्वेध अने उत्सेधनी हानिना विषयमां कहेला छे. आनो भावार्थ आ प्रमाणे छे-लवणसमुद्रना मध्यभागे दश हजार योजनप्रमाण क्षेत्र
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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