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समवाय ९५॥
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मी समवायाजा
चोपुंअंग
॥१९॥
भाग अधिक अथवा ओछा एवा पंदर मुहर्त थाय छे तेथी वाणुमा मंडळना अर्ध भागमा अहोरात्रनी समानता थाय छे अने तेज अर्ध मंडळने छेडे अहोरामनी विषमता थाय छे. तेथी वाणुमा मंडळनी शरूआतथी आरंभीने त्राणुमुं मंडळ आवे त्यारे सूत्रमा कहेलो अर्थ मळतो आवे छे (३) ॥ सूत्र-९३॥ हवे चोराणुमुं स्थान कहे छे--
मू-निसहनीलवंतियाओ णं जीवाओ चउणउइ जोयणसहस्साइं एकं छप्पनं जोयणसयं दोन्नि य एगूणवीसइभागे जोयणस्स आयामेणं पन्नत्ता । १ । अजियस्स णं अरहओ चउणउइ ओहिनाणिसया होत्था । २ ॥ सूत्रम्-९४ ॥
मूलार्थ:-निषध अने नीलवंत पर्वतनी जीवा चोराणु हजार, एक सो ने छप्पन्न योजन तथा उपर एक योजनना ओगणीशीया वे भाग लंबाइवडे कही छे (१)। अजितस्वामी अरिहंतने चोराणु सो अवधिज्ञानी हता (२)॥
टीकार्थ:-हवे चोराणुमा स्थान विपे काइक लखे छे--'निसहेत्यादि'-अहीं पोणी संवादनी गाथा आ प्रमाणे छे--" चोराणु हजार, एक सो ने छप्पन्न योजन तथा वे कळा आटली निषधनी जीवा कही छे" (१)॥ सूत्र-९४ ॥ हवे पंचाणुमुं स्थान कहे छे-- मू०-सुपासस्स णं अरहओ पंचाणउइ गणा पंचाणउइ गणहरा होत्था। १ । जंबुद्दीवस्स णं
ॐ
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