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________________ all वा समं अहोरत्तं विसमं करेइ ॥३॥ सूत्रम्-९३ ॥ . । मूलार्थः--चंद्रप्रभ अरिहंतने त्राणु गण अने त्राणुं गणधरोहता (१)। शांतिनाथ अरिहंतने त्राणु सो चौदपूर्वी हता(२)। त्राणुमा मंडळे रहेलो सूर्य आभ्यंतर मंडळ तरफ जतो अथवाबाह्य मंडळ तरफ जतो समान (सरखा) अहोरात्रने विषम करेछ (३)। टीकार्थ:-हवे त्राणुमा स्थान विपे कांइक लखे छे-'तेणउइ मंडलेत्यादि'-तेमां अतिवर्तमान एटले सर्व बाह्य मंडळथी सर्व आभ्यंतर मंडळ प्रत्ये जतो अथवा निवर्तमान एटले सर्व आभ्यंतर मंडळथी सर्व बाह्य मंडळ तरफ जतो, अथवा तो आ बन्नेनो अर्थ उलटसुलट करवो. ( आवो सूर्य ) समान अहोरात्रने विषम करे छे. अहीं "अहश्च रात्रिश्च ( अनयोः समाहारः) अहोरात्रं" एवो समाहार द्वंद्व समास को छे. आ बन्नेनुं समानपणुं त्यारे ज होय के ज्यारे आ बन्ने पंदर पंदर मुहूर्त्तना होय. तेमां सर्व आभ्यंतर मंडळमां (सूर्य रह्यो होय त्यारे) अढार मुहूर्तनो दिवस अने बार मुहूर्तनी रात्रि होय छे. अने सर्व बाह्य मंडळमां (सूर्य रह्यो होय त्यारे) तेथी व्यत्यय जाणवो (एटले के बार मुहूर्त्तनो दिवस अने अढार मुहूर्तनी रात्रि होय छे) तथा बाकीना एक सो ने त्राशी मंडळने विष (सूर्य रहे त्यारे दरेक मंडळे ) एकसठीया बवे भाग वृद्धि पामे छे, तथा हानि पामे छे, एटले के ज्यारे । दिवसनी वृद्धि थाय त्यारे रात्रिनी हानि थाय छे अने ज्यारे रात्रिनी वृद्धि थाय त्यारे दिवसनी हानि थाय छे. तेमां वाणुमे मंडळे दरेक मंडळे मुहूर्त्तना एकसठीया बे वे भागनी वृद्धि थवाथी त्रण मुहूर्त अने एकसठीयो एक भाग अधिक एटली वृद्धि के हानि थाय छे. आ प्रमाण बार मुहर्त्तमां उमेरवाथी अथवा अढार मुहूर्तमाथी बाद करवाथी बन्ने वाजुए एकसठीया एक
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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