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समवाय ९५॥
समवाया
चोधू अंग
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(दगमाळ ) छे ( ते जंबुद्वीपथी अने धातकीखंडथी पंचाणु पंचाणु हजार योजन जइए त्यारे बच्चेना दश हजार योजनमा सीधी पीठिकाने आकारे जळनी दगमाळ छे) तेनो उद्वेध एटले ऊंडाइ सम पृथ्वीतळनी अपेक्षाए एक हजार योजन छे. त्यांधी पंचाणु प्रदेश उल्लंघन करीए त्यां उद्वेधनो एक प्रदेश हानि पामे छे, त्यांथी पण पंचाणु प्रदेश जइए त्यां उद्वेधनो चीजो एक प्रदेश हानि पामे छे. ए प्रमाणे पंचाणु पंचाणु प्रदेश ओळंगतां एक एक प्रदेश प्रमाण उद्वेधनी हानि थतां पंचाणु हजार योजन ओळंगीए त्यारे समुद्रतटना प्रदेशने विष हजार योजन प्रमाण जे उद्वेध हतो ते हजार योजननी हानि थाय छे एटले के समभृतळपणुं थाय छे. तथा ते लवणसमुद्रना मध्य भागनी अपेक्षाए ते समुद्रना तटनो उत्सेध एटले ऊंचाइ एक हजार योजन छे. तेमां समभूतळरूप ते समुद्रतटथी पंचाणु प्रदेश ओळंगीए त्यारे त्यां एक प्रदेश उत्सेधनी हानि थाय छे, त्यांथी पण पंचाणु प्रदेश जइए त्यारे त्यां वीजा एक प्रदेश ज उत्सेधनी हानि थाय छे. ए ज प्रमाणे पंचाणु पंचाणु प्रदेशना ओळंगवावडे एक एक प्रदेशनी हानि थतां पंचाणु हजार योजन ओळंगीए त्यारे त्यां समुद्रना मध्य भागे हजार योजननो उत्सेध हानि पामे छे. आप्रमाणे एक हजार योजन प्रमाण उत्सेधनी हानि थवाथी एक हजार योजन प्रमाण उद्वेध थाय छे. 'लवणस्सेति'-अथवा तो उद्वेधने माटे जे उत्सेधनी हानि कही अने तेमा जे पंचाणु प्रदेशो कह्या, ते प्रदेशो ओळंगवाथी उत्सेधथकी प्रदेश प्रदेशनी हानि थये सते प्रदेश प्रदेशनो उद्वेध थाय छे (३) । तथा कुंथुनाथ सत्तरमा तीर्थकर थया, तेना कुमारपणामां, मांडलिक राजापणामां, चक्रवर्तीपणामां अने अनगारपणामां दरेकमां त्रेवीश हजार अने साडा सात सो वर्ष होवाथी सर्व आयुष्य पंचाणु हजार वर्षनुं थाय छ (४) तथा मौर्यपुत्र ते श्री महावीरस्वामीना
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