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समवायाङ्गः
सूत्र ॥
चो अंग
॥९८४॥
मू० - एगमेगस्स णं चंदिमसूरियस्स अट्ठासीइ अट्ठासीइ महग्गहा परिवारो पन्नत्ता । १ । दिट्टिवायरस णं अट्ठासीइ सुत्ताई पन्नत्ताई, तं जहा - उज्जुसुयं परिणयापरिणयं एवं अट्ठासीइ सुत्ताणि भाणियवाणि जहा नंदीए |२| मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोथूभस्स आवासपवयस्स पुरच्छिमिल्ले चरमंते एस णं अट्ठासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते |३| एवं चउसु वि दिसासु नेयव्वं । ४ । बाहिराओ उत्तराओ णं कट्ठाओ सूरिए पढमं छम्मासं अमाणे चोयालीसमे मंडलगते अट्ठासीति एगसद्विभागे मुहुत्तस्स दिवसखेत्तस्स निवुत्ता रयणिखेत्तस्स अभिनिवुत्ता सूरिए चारं चरइ । ५ । दक्खिणकट्ठाओ णं सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे चोयालीसति मे मंडलगते अट्ठासीई एगसट्टिभागे मुहुत्तस्स रयणिखेत्तस्स निवुत्ता दिवसखेत्तस्स अभिनिवृडित्ता णं सूरिए चारं चरइ । ६ ॥ सूत्रम्-८८ ॥
मूलार्थ:- एक एक ( दरेक ) चंद्र-सूर्यना अडाशी अठ्ठाशी महा ग्रहोरूप परिवार को छे (१) । दृष्टिवादना सूत्रोछे, ते आ प्रमाणे- ऋजुसूत्र, परिणतापरिणत, इत्यादि अठ्ठाशी सूत्र जेम नंदी सूत्रमां कला छे तेम कहेवा (२) । मेरु पर्वतना पूर्व तरफना चरमांतथी गोस्तुभ नामना आवास पर्वतना पूर्व तरफना चरमांत सुधी अट्ठाशी हजार
समवाय ८८ ॥
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