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अबाधाए आंतरूं कहुं छे (६) । एज प्रमाणे रुक्मी कूटनु पण कहेQ (७)।..
टीकार्थ:-हवे सत्ताशीमा स्थानक विषे कांइक कहे छे-'मंदरेत्यादि-मेरुना पूर्व तरफना अंतथी जंबूद्वीपनी अंदरनो भाग पीस्ताळीश हजार योजननो छे, अने बेंताळीश हजार योजन लवणसमुद्रमा जइए त्यारे वेलंधर नागराजनो आवासभूत गोस्तूभ नामनो पर्वत पूर्व दिशामा रहेलो छे, तेथी ते बन्ने मळीने सत्ताशी हजार योजन- आंतरं थाय छे (१)।
एज प्रमाणे बीजात्रणेनुं आंतरं जाणवू (२-३-४)। तथा पहेली ज्ञानावरण अने छेल्ली अंतराय ए वे मूळ कर्भप्रकृति रहित Id बाकीनी छ मूळकर्मप्रकृतिनी एटले दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्क, नाम अने गोत्र कर्मनी सत्ताशी उत्तरप्रकृतिओ
कही छे. केवी रीते ? ते कहे छ-दर्शनावरण विगेरे छ कर्मनी उत्तरप्रकृतिओ अनुक्रमे नव, वे, अहावीश, चार, बेंता
ळीश अने बे छे. ते सर्व मळीने सूत्रमा कहेली ८७ उत्तरप्रकृतिओ थाय छे (५)। 'महाहिमवंतेत्यादि'-महाहिमवान NE नामना बीजा वर्षधर पर्वत उपर सिद्धायतनकूट, महाहिमवत्कूट विगेरे आठ कूटो छे, ते पांच सो पांच सो योजन ऊंचा छे. i: तेमां महाहिमवंत कूटना पांच सो योजन, महाहिमवंत वर्षधर पर्वतनी ऊंचाइना बसो योजन अने रत्नप्रभाना खरकांडना अवांIN तर कांडोमांना सौगंधिककांड सुधीना आठ कांडो के जे दरेक कांड हजार हजार योजन प्रमाणवाळा छ तेना एंशी सो योजन
ए त्रणे मळीने कुल सत्ताशी सो योजननु आंतरं थाय छे (६) । एज प्रमाणे रुक्मी नामना पांचमा वर्षधर पर्वत उपरजे बीजुं 1 रुक्मीकूट नामनुं कूट छे, तेनुं पण आंतरं महाहिमवत्कूट प्रमाणे ज कहेवू, केमके ते बन्नेनुं सरखुंज प्रमाण छे (७)।। सूत्र-८७॥
हवे अठाशीमुं स्थानक कहे छे
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