________________
भी
समवायाङ्ग सूत्र ॥
पोपुं अंग
॥१८३॥
आवासपव्वयस्स पुरच्छिमिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीई जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते | ३ | एवं चैव मंदरस्स उत्तरिल्लाओ चरमंताओ दगसीमस्स आवासपवयस्स दाहिणिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीई जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पन्नत्ते । ४ । छण्हं कम्मपगडीणं आइमउवरिल्लवज्जाणं सत्तासीई उत्तरपगडीओ पन्नत्ताओ | ५ | महाहिमवंतकूडस्स णं उवरिमंताओ सोगंधियस्स कंड हेट्ठिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीइ जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पन्नत्ते । ६ । एवं रुप्पिकूडस्स वि । ७ ॥ सूत्रम्-८७॥
मूलार्थ:- मेरु पर्वतना पूर्व दिशाना चरमांतथी गोस्तूभ नामना आवास पर्वतना पश्चिम चरमांत सुधी (४५ हजार जंबूद्वीपना अने ४२ हजार लवण समुद्रना एम) सत्ताशी हजार योजननुं अबाधाए आंतरुं कधुं छे (१) । मेरु पर्वतना दक्षिण चरमांतथी दकभास नामना आवास पर्वतना उत्तर चरमांत सुधी सत्ताशी हजार योजननुं अबाधाए आंतरुं कथं छे (२) । ए ज प्रमाणे मेरु पर्वतना पश्चिम चरमांतथी संख नामना आवास पर्वतना पूर्व चरमांत सुधी सत्ताशी हजार योजननुं अबाधाए आंतरु छे. (३) । ए ज प्रमाणे मेरु पर्वतना उत्तर चरमांतथी दकसीम नामना आवास पर्वतना दक्षिण चरमांत सुधी 'सचाशी हजार योजननुं अबाधाएं आंतरुं कह्युं छे (४) । पहेला अने छेल्ला कर्म रहित बाकीना छ कर्मनी उत्तरप्रकृतिओ सत्ताशी कही छे (५) । महाहिमवान कूटना उपरना छेडाथी सौगंधिक कांडनी नीचेना चरमांत सुधीमां सत्ताशी सो योजनतु
समवाय ८७ ॥
॥१८३॥