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: मूलार्थ:-सुविधिनाथ एटले पुष्पदंत नामना अरिहंतने छाशी गण अने छाशी गणधरो हता (१)। सुपार्श्वनाथ अरिहंतने छाशी सो वादी हता (२)। बीजी पृथ्वीना बहु मध्य देशभागथकी बीजा घनोदधिनी नीचेना चरमांत सुधी छाशी हजार योजन- अबाधाए आंतरं कर्तुं छे (३)॥
टीकार्थ:-हवे छाशीमा स्थानक विषे काइक लखे छे-तेमां सुविधि नामना नवमा जिनेश्वरना अहीं छाशी गण अने गणधरो कह्या छे अने आवश्यक सूत्रमा तो अठाशी कह्या छे, ते मतांतर जाणवू (१)। तथा वीजी पृथ्वी शर्कराप्रभा. तेनुं बाहल्य एक लाख ने बत्रीश हजार योजननुं छे, तेनु अर्ध करतां छासठ हजार योजन थाय तथा तेनी नीचे रहेलो. वीजी पृथ्वी संबंधी होवाथी बीजो घनोदधि बाहल्यपणे वीश हजार योजननो छे, ते बन्ने मळीने छाशी हजार योजन | थाय छे (३)॥ सूत्र-८६ ॥
हवे सत्ताशीमुं स्थानक कहे छे--
मू०-मंदरस्स णं पवयस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोथूभस्स आवासपवयस्स पञ्चच्छिमिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पन्नत्ते । १ । मंदरस्स णं पव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ चरमंताओ दगभासस्स आवासपवयस्स उत्तरिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीई जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पन्नत्ते । २। एवं मंदरस्स पच्चच्छिमिल्लाओ चरमंताओ संखस्स