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योजन- अबाधाए आंतरूं का छे (३)। एज प्रमाणे चारे (बाकीनीत्रणे) दिशामां जाणवू (४) सर्व आभ्यंतर मंडळरूप बहारनी. उत्तर दिशाथकी पहेला छ मास तरफ एटले दक्षिणायन तरफ आवतो सूर्य ज्यारे चुमाळीशमा मंडळे आवे त्यारे मुहूतैना एकसठीया अहाशी भाग जेटली दिवसक्षेत्रनी एटले दिवसनी हानि करीने अने रात्रिक्षेत्रनी तेटली ज वृद्धि करीने सूर्य गति करे छे (५)। तथा दक्षिण दिशा थकी बीजा छ मास तरफ एटले उत्तरायण तरफ आवतो सूर्य ज्यारे चुमाळीशमा मंडळे आवे त्यारे मुहूर्त्तना एकसठीया अठाशी भाग जेटली रात्रिक्षेत्रनी (रात्रिनी) हानि करीने अने | तेटली ज दिवस क्षेत्रनी वृद्धि करीने सूर्य गति करे छ (६)॥
टीकार्थ:-हवे अहाशीमा स्थान विषे कांइक लखे छे-चंद्र सूर्य असंख्याता छे तो पण अहीं दरेक चंद्र सूर्यना परिवारभूत अहाशी ग्रह जाणवा. अहीं चंद्रमा अने सूर्य एम समाहार द्वंद्व समास को छे, तेथी चंद्रसूर्यरूपी युगलना अठाशी महाग्रहो छे, आ ग्रहो जो के चंद्रना ज परिवाररूप छे एम अन्यत्र कहेलुं छे, तो पण सूर्य पण इंद्र ज छे तेथी तेज ग्रहो तेना पण परिवाररूप जाणवा (१) 'दिद्विवाएत्यादि' दृष्टिवाद एटले बारमुं अंग, ते पांच प्रकारचें छे-परिकर्म १, सूत्र २, पूर्वगत ३, प्रथमानुयोग ४ अने चूलिका ५. तेनो बीजो प्रकार जे सूत्र छे तेमां सूत्र अद्याशी छे. 'जहा नंदिए त्ति'-जेम नंदी सूत्रमा कह्या छे तेम, ए प्रमाणे अतिदेश (भलामण) करीने सूत्रो देखाड्या छे ते आगळ कहेवामां आवशे (२)। 'मंदरस्सेत्यादि'-मेरुना पूर्व दिशाना छेडाथी जंबूद्वीपनो छेडो पीस्ताळीश हजार योजन दूर छे, त्यांथी ARE बेंताळीश हजार योजन जइए त्यारे त्यां गोस्तूभ नामनो आवास पर्वत छे, ते पर्वतनो विष्कम एक हजार योजननो छे, तेथी,