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कहीए, तेवा तथा शीर्षप्रहेलिका छे अंते जेने ते शीर्षप्रहेलिकापर्यवसान कहीए, तेवा स्वस्थानथकी एटले पूर्व पूर्व (संख्याता ) स्थानथी उत्तरोत्तर संख्याना स्थाननी उत्पत्ति स्थानवाळा संख्याविशेषथकी अर्थात् गुणवा लायक संख्याथकी स्थानांतरो एटले तेनी पछीना संख्यास्थानो अर्थात् गुणाकारथी उत्पन्न थयेला व्यवधान रहित तरतना संख्याविशेष जेने विषे छे ( बहुव्रीहिसमास ) ते स्वस्थानस्थानांतर एटले अनुक्रमे रहेला संख्याना स्थानविशेष कद्देवाय छे, अथवा ( बहुव्रीहि समास न करीए तो ) स्वस्थान एटले पूर्वस्थान अने स्थानांतर एटले पछीना तरतना स्थान (द्वंद्व समास ) ते स्वस्थानस्थानांतर कवाय छे, अथवा (द्वंद्व समास पण न करीए तो ) स्वस्थानथकी एटले पूर्वांग नामना प्रथम स्थानथकी स्थानांतर एटले ( पूर्व विगेरे) कहेवाने इच्छेला पछीना स्थानो ( पंचमी तत्पुरुष समास ) ते स्वस्थानस्थानांतर कहेवाय छे. तेनो (स्वस्थानस्थानांतरनो ) चोराशी एटले 'लक्ष' शब्दनो अध्याहार होवाथी चोराशी लाखवडे गुणाकार करवानो को छे. ते आ प्रमाणे- चोराशी लाख वर्षे करीने (पूर्वनुं) एक पूर्वांग थाय छे, ते (पूर्वांग) स्वस्थान छे, तेने चोराशी लाखे गुणवाथी एक पूर्व कहेवाय छे, ते स्थानांतर थयुं. ए ज प्रमाणे पूर्व स्वस्थान छे, तेने चोराशी लाखे गुणवाथी तेनी पछीनुं स्थान त्रुटितांग नामनुं थाय छे (ते त्रुटितांगने चोराशी लाखे गुणवाथी एक त्रुटित थाय छे. इत्यादि उत्तरोत्तर स्थानो जाणवा.) अहीं आ संख्यानां स्थानो माटे आ प्रमाणे वे गाथाओ छे - " पूर्व १, त्रुटित २, अडड ३, अवव ४, हूहूक ५, उत्पल ६, पद्म ७, नलिन ८, अर्थनिपूर ९, अयुत १०, नयुत ११, प्रयुत १२, चूलिका १३ अने शीर्षप्रहेलिका १४ आ चौद नाम अंग शब्दवडे युक्त करवा ( पूर्वांग, त्रुटितांग विगेरे. ) एम करवाथी अठ्ठावीश स्थानो थाय छे. अहीं ( शीर्षप्रहेलिकाना ) एक.
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