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समवाय ८४॥
ज्या अर्थनी प्राप्ति थाय अयाख्याप्रज्ञप्ति एटले भगवती मन्त्रालय चोराशी हजार योजननु छ, या चार
ऊंचा छे) (८)। हरिवासेत्यादि- चत्तारिय भागा जोयणस्स त्ति'-अहीं योजनना चार भाग कह्या ते ओगसमवायाङ्गणीशीया चार भाग जाणवा. आ अर्थने माटे अर्ध गाथा आ प्रमाणे कही छे-"चोराशी हजार ने सोळ योजन तथा चार
सूत्र॥ कळा एटलुं धनुःपृष्ठ कयुं छे." (९) तथा पंकबहुल ए बीजुं कांड छे, तेनुं वाहल्य चोराशी हजार योजननुं छे, तेथी सूत्रमा -चो
कहेलो अर्थ बराबर छ (१०)। तथा व्याख्याप्रज्ञप्ति एटले भगवती सूत्र. तेमां पदना परिमाणे करीने चोराशी हजार
पदो छे. अहीं ज्यां अर्थनी प्राप्ति थाय-अर्थ पूर्ण थाय ते पद कहेवाय छे. मतांतरे तो आचारांग सूत्रमा अढार हजार पदनुं ॥१८॥
प्रमाण कहेलं होवाथी तथा बाकीना अंगो तेथी बमणा प्रमाणवाळा होवाथी व्याख्याप्रज्ञप्तिना पदो बे लाख ने अठ्ठाशी हजार छे एम कहे छे (११)। तथा नागकुमारना आवासो चुमाळीश लाख दक्षिणमां अने चाळीश लाख उत्तरमा छे ते बन्ने मळीने चोराशी लाख थाय छे (१२)। योनि एटले जीवनी उत्पत्तिनां स्थान, ते रूपी प्रमुख एटले द्वार, ते योनिप्रमुख
कहेवाय छे ते चोराशी लाख कह्या छे. केवी रीते ? ते कहे छे-"पृथ्वीकाय, अप्काय, अग्निकाय अने वायुकाय ते एक के एकनी सात सात लाख योनि (२८) छे, प्रत्येक वनस्पतिनी दश लाख अने अनंतकायनी चौद लाख ( कुल २४ लाख) ॐ योनि छे, विकलेंद्रियनी (बेइंद्रिय, तेइंद्रिय ने चौरेंद्रियनी) बबे लाख (६) योनि छे, नारकी अने देवनी चार चार
लाख (८) योनि छे." पंचेंद्रिय तिर्यचने विषे चार लाख, मनुष्यने विषे चौद लाख योनि छे. अहीं जो के जीवोना उत्पत्तिस्थानो असंख्याता छे तो पण सरखा वर्ण, गंध, रस अने स्पर्शवाळा घणा स्थानोने एक ज स्थानपणे विवक्षा होवाथी कहेली योनिनी संख्यामां दोष जाणवो नहीं (१४)।' पुवाइयाणमित्यादि' पूर्व छ आदि जेने ते पूर्वादिक
॥१८॥