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पहेलो रत्नकांड सोळ प्रकारना रत्नमय छे, तेनु बाहल्य सोळ हजार योजननुं छे, बीजो पंकवकुलकांड चोराशी हजार योजन प्रमाण छेत्रीजो अब्बहल कांड एंशी हजार योजन प्रमाण छे (५)। "जंबुद्दीवे णमित्यादि' (जंबूद्वीपमां १८० योजन)। 'ओगाहित्त त्ति'-प्रवेश करीने 'उत्तरकट्ठोवगय त्ति'-उत्तर काष्ठा-दिशामां गयेलो सूर्य प्रथम उदयने करे छे एटले सर्व आभ्यंतर मंडळमां ऊंगे छ (७) ॥ सूत्र-८०॥ हवे एकाशीमुं स्थान कहे छे
मू-नवनवमिया णं भिक्खुपडिमा एक्कासीइ राइदिएहि चउहि य पंचुत्तरोहिं (भिक्खासएहिं ) अहासुत्तं जाव आराहिया ।१। कुंथुस्स णं अरहओ एक्कासीति मणपज्जवनाणसया होत्था । २ । विवाहपन्नत्तीए एकासीतिं महाजुम्मसया पन्नत्ता ॥ ३॥ सूत्रम्-८१ ॥ - मूलार्थः-नवनवमिका नामनी भिक्षुपडिमा एकाशी रात्रिदिवसे अने चार सो ने पांच भिक्षा( दत्ति )ए करीने सूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् आराधेली थाय छ (१)। कुंथुनाथ नामना सत्तरमा अरिहंतने एकाशी सो (८१०० ) मन:पर्यवज्ञानी हता (२)। विवाहप्रज्ञप्तिमा एकाशी महायुग्मशत ( अध्ययनो) कयां छे (३)॥
टीकार्थः-हवे एकाशीमा स्थानक विपे कांइक लखे छे-'नवनवमिके त्ति'-जेने विषे नवमा दिवस नव वार होय a ते नवनवमिका कहेवाय छे, केमके नवनवकने विष नव नवमा दिवस होय ज छे. आ भिक्षुप्रतिमाने विपे एकाशी रात्रिदिवस