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समवाय
८०॥
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Fal तिविट्ठी णं वासुदेवे असीइवाससयसहस्साई महाराया होत्था । ४ । आउबहुले णं कंडे असीइ समवायाङ्ग जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पन्नत्ता । ५। ईसाणस्स देविंदस्स देवरन्नो असीई सामाणियसाहस स्सीओ पन्नत्ताओ । ६ । जंबुद्दीवे णं दीवे असीउत्तरं जोयणसयं ओगाहेत्ता सूरिए उत्तरकट्टोवगए चो अंग
पढमं उदयं करेइ । ७॥ सूत्रम-८० ॥ ॥१७॥
मूलार्थः-श्रेयांस नामना (अग्यारमा) अरिहंत ऊंचाइवडे एंशी धनुप ऊंचा हता (१)। त्रिपृष्ठ वासुदेव ऊंचाइवडे एंशी धनुष ऊंचा हता (२)। अचळ नामना बळदेव ऊंचाइवडे एंशी धनुप ऊंचा हता (३)। त्रिपृष्ठ वासुदेव एंकी लाख वर्ष सुधी महाराजापणे रह्या हता. (४)। (आ रत्नप्रभानो) अब्बहुल कांड एंशी हजार योजन बाहल्यवडे (जाडाइवडे) कह्यो छे (५)। देवराज ईशान देवेंद्रने एंशी हजार सामानिक देवो कह्या छे (६)। जंबूद्वीप नामना द्वीपमा एक सो ने ऐंशी योजन जइए त्यारे उत्तर दिशामां गयेलो सूर्य प्रथम उदयने करे छे ( सर्व आभ्यंतर मंडळमां ऊगे छे) (७)॥
टीकार्थ:--हवे एंशीमा स्थानक विषे काइक लखे छे-श्रेयांस ए अग्यारमा अरिहंत थइ गया (१)। त्रिपृष्ठ ते श्रेयांस जिनेश्वरना काळे थयेला प्रथम वासुदेव हता (२)। तथा अचळ प्रथम बळदेव हता (३) । तथा त्रिपृष्ठ वासुदेवनुं सर्व आयु चोराशी लाख वर्षनुं हतु तेमां चार लाख कुमारपणामां अने वाकीना ऐंशी लाख वर्ष महाराज्यने विषे हता (४)। 'आउबहुल इत्यादि'-रत्नप्रभा पृथ्वीनुं बाहल्य एक लाख ने अंशी हजार योजननुं छे. तेना त्रण कांड छे. तेमां
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